मोहन सरकार का 1 महीना पूरा, सुशासन और कानून व्यवस्था पर सर्वाधिक रहा जोर

प्रादेशिक भोपाल मध्‍य प्रदेश

मोहन सरकार के एक महीने पूरे
सुशासन और कानून व्यवस्था पर रहा सर्वाधिक जोर
अब संकल्प पत्र के प्रमुख वादों और अधूरे कार्यों को पूरा करने पर जोर

भोपाल। मोहन यादव सरकार के एक महीने पूरे हो गए हैं। 13 दिसंबर को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस बीच सरकार का सबसे ज्यादा जोर सुशासन पर रहा। लोगों को किस तरह आसानी से सुविधाएं मिल सकें, इसके लिए नए प्रयोग भी किए गए। अलग-अलग संभागों में जाकर सरकार ने कानून व्यवस्था की संभागीय समीक्षा की। लोगों से जुड़ाव के लिए जनसुनवाई शुरू की गई। कैबिनेट की बैठक भी राजधानी की जगह अलग-अलग स्थान पर करने का प्रयोग शुरू किया गया। सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह संकल्प पत्र के वादों को पूरा करने के प्रति गंभीर है। तेंदूपत्ता संग्राहकों का बोनस बढ़ाया गया, जिसकी संकल्प पत्र में घोषणा की गई थी। सभी मंत्रियों ने अपने-अपने विभागों की समीक्षा भी की है। अब लोकसभा चुनाव के पहले संकल्प पत्र के सभी वादों को पूरा करने की सरकार की कोशिश रहेगी।

लोकार्पण और भूमिपूजन पर सरकार का ध्यान
सरकार का सबसे अधिक ध्यान पहले से चल रहे निर्माण कार्यों को पूरा करने को लेकर भी है, ताकि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के पहले लोकार्पण हो सके। सरकार आचार संहिता लगने के पहले भूमिपूजन की तैयारी में भी है, जिसमें सड़क निर्माण, नए घोषित मेडिकल कालेज शामिल हैं। मार्च के पहले पखवाड़े तक लगभग एक हजार किमी सड़कों का निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य है।

पहले आदेश का नहीं दिखा ज्यादा प्रभाव
मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पहला आदेश धार्मिक स्थलों में तय मानक से अधिक आवाज में बजने वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों को हटाने के लिए दिया था। पुलिस-प्रशासन ने एक महीने में लगभग 27 हजार घ्वनि विस्तारक यंत्र हटवाए, लेकिन कई जगह वे फिर से बजने लगे हैं। दूसरा आदेश खुले में मांस की दुकानें संचालित करने पर रोक को लेकर था। कुछ दिन की सख्ती के बाद फिर सब पुराने ढर्रे में आता दिख रहा है।

आचार संहिता के पहले इनकी शुरुआत की तैयारी
प्रत्येक जिले में एक कालेज को प्रधानमंत्री उत्कृष्ट संस्थान बनाना।
उज्जैन में चना अनुसंधान और डिंडौरी में श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान स्थापित करना।
सात स्मार्ट शहरों की सभी परियोजनाओं को पूरा करना।
कैंसर मरीजों के लिए जिला अस्पतालों में पेलिएटिव केयर की स्थापना, जिससे उन्हें मनोवैज्ञानिक सहयोग मिल सके।

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