उत्तराखंड में यूसीसी विधेयक पर लगी मुहर, विस में हुआ पास

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नई दिल्ली| उत्तराखंड विधानसभा में लंभी चर्चा के बाद समान नागरिकता सहिंता यानी यूसीसी पर मुहर लग गई है। बुधवार को विधानसभा में ध्वनि मत के साथ समान नागरिकता संहिता विधेयक पास हो गया है। इस दौरान सदन के अंदर जय श्री राम और वंदे मातरम् के नारे भी गूंजे। सदन विधेयक पास होने के साथ ही उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला पहला देश का पहला राज्य बन गया है। बता दें कि मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में विधेयक को पेश किया गया था।

सीएम धामी ने कही ये बातें

विधेयक पास होने के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा, ”उत्तराखंड के लिए आज का दिन विशेष है…जिस बिल का लंबे समय से इंतजार था, जिसकी लंबे समय से मांग चल रही थी, वह बिल उत्तराखंड विधानसभा में पारित हो गया है… कानून समानता, एकरूपता और समान अधिकार का है। इसे लेकर कई तरह की शंकाएं थीं लेकिन विधानसभा में दो दिन की चर्चा से सब कुछ स्पष्ट हो गया। यह कानून किसी के खिलाफ नहीं है. यह उन महिलाओं के लिए है जिनके पास सामाजिक मानदंडों के कारण कठिनाई का सामना करना पड़ता है… इससे उनका आत्मविश्वास मजबूत होगा। यह कानून महिलाओं के समग्र विकास के लिए है… बिल पारित हो गया है… हम इसे राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। हम इसे लागू करेंगे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही राज्य में कानून बन जायेगा…”

लड़कियों को संपत्ति और विवाह संबंधी अधिकार

विधेयक में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में माता-पिता के अलावा उसकी पत्नी और बच्चों को समान अधिकार का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा संपत्ति बटवारे में लड़की का समान हक सभी धर्मों में लागू होगा। किसी अन्य धर्म या जाति में विवाह करने पर भी लड़की के अधिकारों का हनन नहीं होगा और सभी धर्मों में विवाह की आयु लड़की के लिए 18 वर्ष अनिवार्य होगी।

मौलाना मदनी ने बताया भेदभावपूर्ण

वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने यूसीसी बिल पर आरोप लगाते हुए उसे भेदभावपूर्ण करार दिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि अनुसूचित जनजाति को इस बिल के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो फिर मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं मिल सकती। उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में पेश किये गए समान नाग रिक संहिता में अनुसूचित जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद जो 366ए अध्याय 25ए उपधारा 342 के तहत नए कानून से छूट दी गई है और यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है।

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