भोपाल। एम्स भोपाल ने मरीजों का डिजिटल रिकार्ड मेंटेन करने में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। वह देश के सभी एम्स संस्थानों के मुकाबले पहले नंबर पर आ गया है। आमतौर पर मरीज अपनी जांच की रिपोर्ट या डाक्टर द्वारा पूर्व में लिखी गई दवा के पर्चे आदि संभाल कर नहीं रखते। इस कारण जब वह दोबारा इलाज के लिए डाक्टर के पास जाते हैं, तो डाक्टर को यह पता नहीं चल पाता कि मरीज ने पहले कौन सी दवाएं ली हैं या टेस्ट रिजल्ट कैसे रहे। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार एम्स भोपाल में लगभग 2.25 लाख मरीजों के रिकार्ड को उनके विशिष्ट नंबर के साथ जोड़ा गया है। अब ऐ से मरीज जब भी किसी डाक्टर के पास इलाज के लिए जाएंगे, तो उनके इलाज का पूरा विवरण डाक्टर को आनलाइन उपलब्ध हो जाएगा। इससे इलाज करने में आसानी होगी। मरीज के रिकार्ड को लिंक करने के मामले में एम्स नागपुर दूसरे नंबर पर है।
क्यूआर कोड स्कैन करने की व्यवस्था
अस्पताल में पंजीकरण के लिए भी क्यूआर कोड स्कैन करने की व्यवस्था शुरू की है, जिससे टोकन तैयार हो सकेगा। स्कैन के जरिए टोकन की व्यवस्था देशभर के सभी एम्स संस्थानों में की गई है। आंकड़े बताते हैं कि एम्स नई दिल्ली में सबसे ज्यादा 11 लाख से अधिक लोगों ने स्कैन द्वारा टोकन प्राप्त किया। दूसरे नंबर पर एम्स भोपाल में लगभग पांच लाख लोगों ने क्यूआर कोड स्कैन करके टोकन लिया।
इनका कहना है : तकनीक का बेहतर तरीके से प्रयोग जीवन को आसान बना देता है और इसी का नतीजा है कि अब एम्स भोपाल में पंजीकरण के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगनी बंद हो गई हैं। क्यूआर कोड की व्यवस्था से मरीजों को लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता।….. प्रो. (डा.) अजय सिंह, कार्यपालक निदेशक, एम्स भोपाल