मध्य प्रदेश शासन के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अब जीव मात्र के भले के लिए निर्णायक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। यहां जनहित की बजाय जीव मात्र के कल्याण का जिक्र इसलिए किया गया है, क्योंकि मोहन यादव की मध्य प्रदेश सरकार अब मनुष्यों के अलावा अन्य जीवों की भी चिंता करने में जुट गई है। और फिर जब बात गौ माता की हो तो फिर उनकी भलाई मोहन से अधिक और कौन कर सकता है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण को मोहन के नाम से भी पुकारा जाता रहा है। कारण यह कि उनकी मोहिनी सूरत हर किसी का मन मोह लिया करती थी। यह भी विदित है कि जिन भगवान कृष्ण को मोहन कहा जाता था वे एक गऊ पालक थे और गायों के प्रति उनका प्रेम आदर सम्मान अनुकरण योग्य आदर्श स्थापित करता रहा है। ऐसा लगता है डॉक्टर मोहन यादव के रूप में मध्य प्रदेश की गायों को एक बार फिर तारणहार मिलने जा रहा है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने अब प्रदेश की गौशालाओं का उद्धार करने का निर्णय ले लिया है। उन्होंने प्रदेश भर के जिम्मेदार अधिकारियों और संबंधित विभाग के कर्ताधर्ताओं को यह निर्देशित किया है कि अब गायों को दरबदर की ठोकरें खाने के लिए अनाथ नहीं छोड़ा जा सकता। अब प्रदेश भर की गौशालाओं का सर्वेक्षण होगा। कितनी गौशालाएं ठीक चल रही हैं और कितनी अनियमित हैं, इसका ब्यौरा तैयार होने जा रहा है। इसी के साथ यह भी सुनिश्चित होगा कि जिन गौशाला संचालकों ने गायों के प्रति संवेदना नहीं दिखाई उनके साथ कड़ा व्यवहार भी अपेक्षित है।
इसी के साथ उन गौशालाओं को पुरस्कृत करने की मंशा आम हो चुकी है जिन्होंने गायों के हित में सराहनीय कदम उठाए हैं। राजधानी में तो यहां के कलेक्टर ने पशुपालन विभाग और क्षेत्र के अनुविभागीय दंडाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दे दिए हैं कि अब इस ओर निर्णायक कदम उठाए जाएं और गायों को व्यवस्थित एवं सर्व सुविधा संपन्न गौशालाओं में एकत्रित किया जाए। ताकि उनके ऊपर अनाथ होने का ठप्पा हमेशा हमेशा के लिए मिटाया जा सके। सभी जानते हैं कि मध्य प्रदेश सहित अनेक प्रांतो में गायों की स्थिति अच्छी नहीं है। बल्कि यह कहा जा सकता है कि अधिकांश भारत में गायें अनदेखी का शिकार हो रही है। खासकर जब वह बूढी हो जाती हैं और उनका दूध उतरना बंद हो जाता है तब तो उनके हिस्से में केवल नारकीय जीवन ही रह जाता है। यह इतना दर्दनाक होता है कि इन्हें देखकर जो सज्जन लोग हैं वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगते हैं कि हे भगवान इससे तो यह अच्छा होगा कि आप इन गायों को उठा ही लें।
कौन नहीं जानता कि भारत के अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्गों सहित विभिन्न सड़कों पर गायों के झुंड बिखरे पड़े रहते हैं। कोई भी जाना और अंजाना छोटा बड़ा वाहन इन्हें ठोकर मारकर मौत की नींद सुला जाता है। यही नहीं, कुछ गायें घायल होने के बाद घिसट घिसट कर मरने के लिए मजबूर भी हो जाती हैं। यदि उनके हिस्से में दुर्घटना ना भी आए तो भी इन्हें भूखे मरते और प्लास्टिक चबाते देखना नियति बन चला है। यहां तक कि अपने पेट की भूख मिटाने के लिए कई गायें भ्रष्टा तक खाने को मजबूर हो चली हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि लंबे समय से अनेक मुख्यमंत्री और अनेक सरकारें गायों के हित में बढ़ चढ़कर बातें करती रही हैं । यह भी उल्लेखनीय है कि गायों के नाम पर राजनीति भी खूब होती रही है। कभी गायों के नाम पर मोब लिंचिंग हो जाती है, तो कभी इन्हें परिवहन करते समय लहू लुहान अवस्था में बरामद किया जाता है। लेकिन गायों के दिन नहीं बहुरे। अब जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव की सरकार गौशालाओं के उन्नयनीकरण की ओर कदम बढ़ा रही है, तब यह भरोसा हो चला है कि अब गायों के अच्छे दिन आएंगे। इसी के साथ नौकरशाही तथा संबंधित विभागों के अधिकारियों से भी यह उम्मीद की जाती है कि वह प्रदेश की संवेदनशील सरकार की गाय हितैषी योजनाओं को मूर्त रूप देने में कोई कसर शेष न छोड़ें।
इसी के साथ गौपालकों और दुग्ध उत्पादकों से यह अपेक्षा है कि वह भी गायों का दूध सूख जाने के बाद उनके ऊपर से अपना संरक्षक होने का भाव कम ना करें। अंततः तो बुढ़ापा सभी का आता है। यह गायों को भी भुगतना होता है। ऐसे में जब गाय दूध देना बंद कर दे तब उसे छोड़ देना मानवीयता का लक्षण है ही नहीं। यह कृत्य कुछ ऐसा दिखाई देता है जैसे एक पुत्र मां के स्वस्थ रहने तक उसका दुग्ध पान करता रहे और जब माता वृद्ध हो जाए तब कपूत उसे धक्के देखकर घर से बाहर निकाल दे तथा उसे तिल तिल कर करने के लिए मजबूर कर दे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन गायों को कुछ लोग काटने के लिए कत्ल खाने तक भेजने का कार्य कर रहे हैं। बेशक इसके लिए वे लोग जिम्मेदार हैं जो सरकारी मंशा के खिलाफ जाकर गौ मांस का व्यापार कर रहे हैं । लेकिन उनसे भी ज्यादा जिम्मेदार और दोषी वे गोपालक हैं जिन्होंने गाय का तब तक दोहन किया जब तक कि वह दूध देती रही। लेकिन जैसे ही उसका दूध उतरना बंद हुआ गऊ पालक ने उसे अनाथों की तरह सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया।
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि गऊ पालक अपनी गायों का जीवन रहने तक सेवा करने का क्रम बनाए रखें। यह इसलिए भी सहज है, क्योंकि गाय जब तक जीवित रहती है तब तक वह अपने पालक को इतना आर्थिक लाभ तो देती ही रहती है कि वह आसानी से उसका लालन पालन कर पाए। उदाहरण के लिए दूध सूख जाने के बावजूद गाय का गोबर और उसका मूत्र बहु उपयोगी एवं बेहद कीमती वस्तु हो चला है।
उसके गोबर और मूत्र से अनेक कीटनाशक खाद एवं दवाएं निर्मित की जा रही हैं। बाजार में मांग के चलते अब इन वस्तुओं के व्यापारी भी बहुत आयात में हैं ।अतः दूध न होने पर भी गाय का गोबर तथा मूत्र बेचकर भारी भरकम लाभ कमाया जा सकता है। यह भी विचार करने योग्य है कि गाय का गोबर खेती किसानी के कार्य में तो अमृत का काम करता है। यदि यह सकारात्मक भाव पैदा हो जाए तो गौ पालक को आर्थिक लाभ तो होगा ही, साथ में वह कृषि जो रासायनिक खादों पर निर्भर होकर जहरीली होती जा रही है, उसे भी शुद्ध बनाया जा सकेगा। यह बात इसलिए भी लिखी जा रही है क्योंकि कोई भी योजना जनसाधारण के सहयोग के बगैर अकेली सरकार क्रियान्वित नहीं कर सकती। अतः उम्मीद यह की जानी चाहिए कि जब डॉक्टर मोहन यादव की मध्य प्रदेश सरकार गायों के हित में ईमानदार प्रयास करने जा रही है, तो इसके क्रियान्वयन में सभी का सकारात्मक सहयोग मिलना ही चाहिए।
यदि सरकारी स्तर पर चेतना जगाई जाए तो यह कहना भी एक अखबार नवीस का फर्ज बनता है कि अब तक गौशालाओं में जो भ्रष्टाचार होता रहा है, सरकार को उस पर भी नजर डालनी होगी। समय समय पर विभिन्न गौशालाओं के चित्र अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर छपते रहे हैं। उन दृश्यों को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गायें दर्दनाक मौत का शिकार होती रहती हैं। उनका मांस चील और कौवे नोचते दिखाई देते हैं।
यह हाल तब है जब सरकार की ओर से गौशालाओं के संचालन हेतु भारी भरकम राशि प्रदान की जाती रही है। देखने में आया है कि कुछ गौशाला संचालक गायों के हिस्से का चारा और अन्य सुविधाएं डकार कर उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ते रहे हैं। सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी ही होगी। ताकि गायों के हित में जो कदम मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव की सरकार उठाने जा रही है, उन्हें पूरी तरह सफलता का मुलम्मा चढ़ाया जा सके।