मुसलमान के त्योहार मोहर्रम के अवसर पर मध्य प्रदेश शांति का टापू बन रहा। जबकि पड़ोसी राज्यों से ताजियों के दौरान उपद्रवों के समाचार आते रहे। जिन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस प्रशासन और शासन को कड़े कदम उठाने पड़ गए । उल्लेखनीय है कि विगत दिवस मुसलमान समुदाय द्वारा मोहर्रम की शुरुआत पर ताजिए निकाले गए। यह परंपरा देश भर में अपने-अपने तरीकों से निभाई गई। लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में इस त्यौहार की आड़ में दंगाइयों ने जो बवाल काटा, वह असहनीय है। इससे वहां का जनजीवन अस्त व्यस्त हुआ। आम जनता के बीच आतंक का माहौल बना और पुलिस प्रशासन को अतिरिक्त मशक्कत करनी पड़ गई। फिर भी इन दुखदाई खबरों के बीच मध्य प्रदेश शांति का टापू ही बना रहा। इसका कारण प्रबुद्ध वर्ग यह बताता है क्योंकि बहुमत के लिहाज से यहां भाजपा की बेहद मजबूत सरकार है। दूसरी बात यह कि इस मजबूत सरकार की कमान डॉक्टर मोहन यादव के हाथ में है। तीसरी बात यह कि मध्य प्रदेश में उन ताकतों को मतदाताओं ने उभरते ही नहीं दिया जो विभिन्न राज्यों में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण की राजनीति करती हैं और सदा ही अपने राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक दंगे भड़काने की फिराक में बनी रहती हैं।
यदि हम उत्तर प्रदेश और बिहार पर नजर डालें तो पाएंगे कि मोहर्रम की शुरुआत पर ही अनेक जिलों में जमकर उपद्रव हुए। जिससे जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ। इसे संभालने के लिए पुलिस प्रशासन को अनेक स्थानों पर शक्ति प्रयोग भी करना पड़ गया। शुरुआत बरेली से करते हैं। यहां पर डीजे बजाने को लेकर दो समुदाय आमने-सामने हो गए। फल स्वरुप तनाव उत्पन्न हुआ तो भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ गया पटना में ताजिए दारों की आड़ में उपद्रवियों ने जमकर लूटपाट मचाई। आम आदमी से मारपीट की। भगदड़ का माहौल बनाया। फल स्वरुप यहां भी पुलिस बल तैनात करना पड़ा और अनेक गिरफ्तारियां भी हुईं । मुजफ्फरपुर में तो गजब ही हो गया। यहां पर उपद्रवियों ने पुलिस वालों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। बाद में अनेक स्थानों की पुलिस बुलाकर माहौल को सकारात्मक किया जा सका। कानपुर में मोहर्रम का जुलूस दो गुटों में बंटा तो ताजिये दार आपस में ही भिड़ गए। जमकर लाठी डंडों का प्रयोग हुआ। जिसे पुलिस बल ने भारी मशक्कत के बाद समाप्त कराया। फतेहपुर की बात करें तो यहां भी दो गुट आपस में भिड़ गए। यहां पर मारपीट मोहर्रम के अवसर पर आयोजित एक मेले में देखने को मिली। कुछ लोगों ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसके नकारात्मक परिणाम देखने को मिले। मोतिहारी में कुछ ज्यादा ही हो गया। यहां पर मारपीट हुई तो बात गोलीबारी तक पहुंच गई। इसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने भारी फोर्स लगाया और वरिष्ठ अधिकारियों को स्वयं निगेहबानी करनी पड़ गई।
प्रयागराज में विवाद के चलते तनाव उत्पन्न हो गया। यहां भारी पैमाने पर आम लोगों के साथ मारपीट की गई। अनेक लोग घायल हुए। जालौन जिले में तो खूनी संघर्ष देखने को मिला। जबकि बहराइच में उपद्रवियों ने जमकर ईंट पत्थर बरसाए। इस उपद्रव में अनेक लोग घायल हुए जिनमें से चार की हालत काफी गंभीर बताई जाती है। कानपुर में भी लाठी डंडे चले। इस जुलूस में सबसे बड़ी बात यह देखने को मिली कि कुछ लोगों ने यहां आपत्तिजनक नारे भी लगाए। उपरोक्त सभी मामलों को लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि जल्दी ही सारे उपद्रवी हवालात में होंगे और स्थिति नियंत्रण में है। अब बात करते हैं कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार में ऐसा क्यों हुआ। हम सभी ने देखा कि हाल ही के लोकसभा चुनाव में इन दोनों राज्यों में भाजपा और एनडीए का भारी पैमाने पर नुकसान हुआ। जहां पहले इन प्रदेशों में बीजेपी अर्थात एनडीए का राज्यों के साथ-साथ लोकसभा में भी काफी बोल वाला हुआ करता था। वहां भले ही विधानसभाओं में बहुमत कम ना हुआ हो, लेकिन नकारात्मक परिणामों के चलते सत्ता पर और शासन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव तो पड़ा है।
खास तौर पर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां योगी आदित्यनाथ बुलडोजर बाबा की ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। बदमाशों, आतंकवादियों, माफियाओं और डॉन जैसे असामाजिक तत्वों पर नकेल डालने और उनका खात्मा करने के लिए योगी आदित्यनाथ पूरे देश में ख्याति अर्जित कर चुके हैं। लेकिन देखने में आ रहा है कि बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा की जो आंशिक हार हुई है और तथा कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के सांसद पहले की अपेक्षा बढ़ गए हैं, इससे माहौल भी आंशिक रूप से परिवर्तित तो हुआ है। सोचने का विषय है कि अभी इन दलों को सरकार में स्थान प्राप्त नहीं है। फिर भी ये राजनीतिक दल और उनके नेता अपनी मौजूदगी जिस रूप में दर्ज करा रहे हैं, वह पहली बार नहीं हुआ है। गौर से देखा जाए तो यहीअसल चिंता का विषय है। सभी जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ से पहले जो सरकारें उत्तर प्रदेश में हुआ करती थी उनके राज्य में दंगे होना आम बात थीं । उस जमाने में जमीनों पर अवैध कब्जे, भू माफियाओं की सरकार में बैठे लोगों से यारी दोस्ती और दंगाइयों का आतंक सामान्य बात थी। बड़े-बड़े डॉन सरकारी पक्ष के साथ गल बहियां करते दिखाई देते थे। लेकिन जब प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज हुई तो यह सभी नकारात्मक दृश्य मानो इतिहास की बात हो चले थे। गुंडे मवाली या तो ठीक हो रहे थे अथवा उन्हें ठोका जा रहा था। फल स्वरुप समूचे उत्तर प्रदेश में शांति का राज पूरी तरह स्थापित हो चला था।
लेकिन बुद्धिजीवी बता रहे हैं कि बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह की ताकतों को आंशिक उभार मिला है, यह सब उसी का नतीजा है। यह ताकतें अपनी नाजायज हरकतों के माध्यम से स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि यदि सरकार उनके हाथों में चली जाती अथवा इन्हें सरकार में आने का अवसर मिल गया तो फिर यह प्रदेश भर में कितना बवाल काटने वाले हैं। अब यदि मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां मोहर्रम के अवसर पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और लोगों को भरोसा है कि ना ही ऐसा कुछ होने वाला है। कारण स्पष्ट है, यहां के मतदाताओं ने भाजपा के लंबे कार्यकाल को देखते हुए पुनः उसी के पक्ष में जनादेश सुनाया है। फल स्वरुप यहां उन ताकतों को सिर उठाने का मौका मिला ही नहीं, जो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टिकरण की राजनीति करती आई हैं । यहां की जनता ने भाजपा को स्पष्ट जनादेश दिया हुआ है। उस पर फिर मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव की सख्त एवं निष्पक्ष कार्य प्रणाली ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि मध्य प्रदेश में दंगाइयों का कोई स्थान शेष नहीं है। फिर भले ही वह किसी भी वर्ग अथवा संप्रदाय के क्यों ना हो। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के अलावा छुटपुट घटनाओं की खबरें पड़ोसी राज्य राजस्थान से भी आती रहीं। लेकिन मोहर्रम की आड़ में असामाजिक तत्वों को मध्य प्रदेश में अपने मंसूबे पूरे करने का कोई मौका मिला ही नहीं।
यहां मुस्लिम समाज ने पारंपरिक तरीके से बेफिक्र होकर मुहर्रम मनाया और कहीं से भी कोई बवाल काटने की खबर नहीं मिली। इन दृश्यों ने मतदाताओं को भी यह संदेश तो दे ही दिया कि जब मतदान करने का समय आए तो छोटे-मोटे मुद्दों से ध्यान हटाकर हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि किस पार्टी और किस मुख्यमंत्री के हाथों में प्रदेश सुरक्षित रहने वाला है। इस नजरिए से देखा जाए तो लोकसभा और विधानसभा चावन के दौरान जो समझदारी मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने दिखाई है, उससे अन्य प्रांतों के मतदाताओं को भी सबक हासिल करने की नितांत आवश्यकता है।