26 जुलाई 2024 के दिन जब पूरा भारत कारगिल विजय दिवस के गौरव पूर्ण इतिहास को याद कर रहा था याद कर रहा था, ऐसे मैं जब यह खबर मिली कि भारतीय जनता पार्टी के अनेक कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शक और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री प्रभात झा का देहावसान को गया है तो यकायक विश्वास ही नहीं हुआ। किंतु नियति को कौन अनसुना और अनदेखा कर सकता है? अंततः यह भरोसा करना पड़ गया कि अब प्रभात झा सशरीर इस दुनिया में नहीं रह गए। आज के बाद उनकी स्मृतियों को केवल अंतर्मन की गहराइयों से ही महसूस किया जा सकेगा। प्रभाव झा का निधन कम से कम भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए तो व्यक्तिगत क्षति ही है। क्योंकि ऐसे अनेक अवसर आए जब किसी भी भाजपा कार्यकर्ता को किसी सहारे की आवश्यकता हुई, तो कभी उनसे कहना नहीं पड़ा। बल्कि जैसे ही उन्हें यह खबर लगी कि अमुक व्यक्ति को मेरी सहायता की आवश्यकता है तो वे स्वयं चलकर आए और अपने अधीनस्थों के लक्ष्य के बीच आने वाली जो भी बाधाएं और परेशानियां थीं ,उनका समूल शमन किया। इस अवसर पर मध्य प्रदेश भाजपा के कार्यालय मंत्री श्री राघवेंद्र शर्मा ने एक प्रसंग को याद किया। उन्होंने बताया कि जब मेरा ड्राइविंग लाइसेंस बनना था और मुझे आवेदन में अपना पता लिखना था। तब मेरा ऐसा कोई स्थाई ठौर ठिकाना नहीं था, जो विधिवत रूप से उक्त आवेदन में लिखा जा सके । तब प्रभात भाई साहब खुद मुझे लेकर आरटीओ ऑफिस पहुंचे। उक्त फार्म में केयर ऑफ करके अपने निवास का पता लिखते हुए कहा कि मेरा ठौर ठिकाना होते हुए भी राघवेंद्र को अपना पता लिखने के लिए इतना सोचना पड़े तो फिर मैं खुद को अप्रासंगिक ही पाता हूं। आज जब वह प्रसंग याद आता है तो आंखें नम हो जाती हैं और महसूस होता है कि प्रभात भाई साहब के रूप में मानो मेरे से से एक ऐसी भावना प्रद छत हट गई, जिसका स्थाई संरक्षण मुझे सदैव मिला रहा। मेरा अनुभव है कि मेरे प्रति प्रभात भाई साहब की जो सद्भावनाएं रहीं, वह उनकी लिए विशेष ना होकर उनका केवल सहज स्वभाव ही थीं । क्योंकि मैंने देखा भी और सुना भी, प्रभात भाई साहब किसी को भी परेशानी में देखते और यह पाते कि वह संबंधित व्यक्ति की परेशानियों का शमन कर सकते हैं तो वे ऐसा अवश्य करते थे। भाजपा नेताओं के मुताबिक उनके इसी सहज सुलभ पारस्परिक सहयोग के व्यवहार ने उन्हें मध्य प्रदेश के एक प्रख्यात नेता के रुप में स्थापित कर दिया। वर्ना कौन नहीं जानता कि प्रभात झा मूलतः बिहार के निवासी थे और उच्च शिक्षा के लिए उनका मध्य प्रदेश के ग्वालियर महानगर में आगमन हुआ था। तब संघ के प्रयासों से उन्हें वहां के मुखर्जी भवन में ठहराया गया, जिसे हम ग्वालियर के भाजपा कार्यालय के रूप में पहचानते हैं। पढ़ने लिखने का शौक उन्हें ग्वालियर के जयेंद्र गंज क्षेत्र में स्थित स्वदेश कार्यालय तक ले आया। और फिर लंबे समय तक स्वदेश और प्रभात झा एक दूसरे के पर्याय बने रहे। अनेक वरिष्ठ पत्रकार साथी बताते हैं कि जब जब प्रभात झा के लेख स्वदेश की फ्लैश स्टोरी हुआ करते थे तब तब उक्त प्रख्यात समाचार पत्र का प्रिंट आर्डर बढ़ता दिखाई देता था। देश और प्रदेश के विकास को समर्पित उनके लेखों ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी प्रभावित किया। फलस्वरुप वे मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के संवाद प्रमुख बनाए गए। उनके कार्यकाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को उनकी ओर से बेहद आत्मीयता का व्यवहार मिला और प्रोत्साहन भी। इससे प्रभात झा का कद और उनका संपर्क दिनों दिन व्यापक होता चला गया। इस प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताते हुए उनके हाथों में मध्य प्रदेश के संगठन की कमान सौंप दी और वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत हुए। उन्होंने अपने प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में अनेक ऐसे जोखिम पूर्ण निर्णय लिये जो पार्टी के लिए नवाचार भी थे और लाभदायक भी। नतीजतन उनके कार्यकाल में भाजपा को नई ऊंचाइयां मिली और संगठन का व्यापक विस्तार भी हुआ। प्रभात जी स्वभाव से बेहद उत्कृष्ट श्रेणी के लेखक, चिंतक और विचारक थे। अनेक व्यस्तताओं के बावजूद उनका लेखन अनवरत जारी रहा और अपने जीवन में उन्होंने अनेक साहित्यों की रचना की। उनकी इस योग्यता का प्रयोग संगठन ने अपने मुख पत्र कमल संदेश में भी किया। इस बीच विभिन्न माध्यमों से आप सुविधाओं की दृष्टि से बेहद पिछड़ी हुई बस्तियों में जनता जनार्दन के सेवा कार्यों में संलग्न बने रहे। उनके द्वारा किए जाने वाले जनहित के कार्यों को और व्यापकता मिले, इस दृष्टि से भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में चुनकर भेजा और प्रभात झा इस कसौटी पर भी खरे साबित हुए। यही वजह रही कि बाद में उन्हें भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद भी सौंपा गया। इस प्रकार अपनी तरुण अवस्था से लेकर मृत्यु पर्यंत प्रभात झा पत्रकारिता, साहित्य लेखन और भाजपा के माध्यम से जनसाधारण के सेवा कार्य को समर्पित बने रहे। जीवन के अधिकांश समय तक जिनके निवास का पता भाजपा कार्यालय ही रहा, ऐसे प्रभात झा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उन्हें गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भोर के ब्रह्म मुहूर्त में उन्होंने वैकुंठ लोक की ओर महाप्रयाण किया तो ऐसा लगा मानो भाजपा ही नहीं, वरन् मध्य प्रदेश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। एक नेता जो अपने से छोटे कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की अपने परिवारजनों की तरह चिंता करता था, वह अब इह लोक का निवासी नहीं रहा। हमारे पूर्वज कहा करते थे कि अच्छे लोगों की भगवान को भी आवश्यकता होती है। लगता है, शायद इसीलिए उन्होंने भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा को कुछ जल्दी ही इस लोक से अपने लोक के लिए बुला लिया। पत्रकार साहित्यकार और भाजपा नेता अपने कृतित्व, लेखन, जन हितेषी राजनीति, उत्कृष्ट पत्रकारिता में स्थापित मानदंडों और जनता जनार्दन की सेवा में किए गए सद्कार्यों के माध्यम से सदैव अपने समर्थकों और प्रशंसकों के मन मस्तिष्क में बने रहेंगे। 4 जून 1957 को बिहार की पावन भूमि पर परम श्रद्धेय पिताश्री पनेश्वर झा और माताश्री अमरावती के आंगन में अवतरित हुए और फिर 26 जून 2024 को अनंत ब्रह्मांड में समाहित हो गए स्वर्गीय श्री प्रभात झा को विनम्र श्रद्धांजलि।