हादसों को लेकर सरकार की संवेदनाओं को चुनौती देना सर्वथा अनुचित

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पहले रीवा और अब सागर जिले में जो कुछ हुआ वह हृदय को विदीर्ण कर देने वाला घटनाक्रम है। यह भयावह तो है ही, साथ में हृदय विदारक भी। क्योंकि जो मरे वह सभी बच्चे थे। ऐसे बच्चे, जिन्होंने अभी ठीक से दुनिया को देखा तक नहीं था। इनमें से पहले वो जो स्कूल से पढ़कर खुशी खुशी अपने घरों की ओर लौट रहे थे। दूसरे वो, जो एक धार्मिक आयोजन मेंए भाग लेते हुए पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण कर रहे थे। किसी ने नहीं सोचा था कि हंसते खेलते अपनी दुनिया में मस्त यह बच्चे अचानक काल कवलित हो जाएंगे और इनके अभिभावकों व परिजनों को कभी खत्म न होने वाले दुख से रूबरू होना पड़ जाएगा। लेकिन जो किसी ने नहीं सोचा था वह घटित हो गया। पहले घटनाक्रम में लगभग आधा दर्जन बच्चे एक जीर्ण शीर्ण दीवार के नीचे दबे और उनमें से तत्काल चार लोगों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। दूसरी घटना उससे भी ज्यादा भयानक घट गई। इसमें 15 बच्चों पर एक पुराना मकान ऐसा गिरा की नौ बच्चों की तत्काल ही मौत हो गई। यह दोनों घटनाएं हादसा मात्र न होकर एक ऐसा भावनात्मक घटनाक्रम है जो हृदय को अंदर तक प्रभावित करता है। निसंदेह इस अपूरणीय क्षति का सबसे अधिक दुख मरने वालों के परिजनों और उनके माता-पिता को ही हुआ है। किंतु यह भी सत्य है जिसने भी उक्त घटनाओं को देखा अथवा सुना, वह दुखी हुए बगैर नहीं रह सका। ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी ने इन घटनाओं के बारे में जाना और उसकी आंखें नम ना हुई हों। बेशक गुस्सा भी आया होगा, प्रशासन पर, स्थानीय निकाय पर और उस जमीनी अमले पर, जिसका दायित्व था कि वह जर्जर मकानों ,दीवारों एवं अन्य निर्माणों को लेकर मुस्तैद बना रहता। यदि ऐसा होता तो संभव है प्रदेश को इन दो मनहूस घटनाओं से रूबरू नहीं होना पड़ता। लेकिन जब यह समझ में आ रहा है कि बच्चे इसलिए मरे, क्योंकि एक दीवार पहले से ही बेहद कमजोर अवस्था में गिरती दिखाई दे रही थी। एक मकान केवल बांस और बल्लियों पर टिका हुआ था। प्रदेश भर में बारिश भी नए रिकॉर्ड स्थापित किये जा रही थी। इस बात की आशंकाएं साफ दिखाई दे रही थीं कि यह दोनों निर्माण कभी भी गिर सकते हैं और किसी बड़े हादसे का सबब बन सकते हैं। किंतु इन्हें नजर अंदाज किया गया। इनसे संबंधित लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। इसका नतीजा हुआ कि जो नहीं होना था वह हो गया। लिखने की आवश्यकता नहीं कि जो बच्चे इन दोनों हादसों में मृत्यु का शिकार बने, अब वह कभी भी अपने परिवारों को प्राप्त नहीं हो पाएंगे। लेकिन अब शासन की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे वातावरण का निर्माण करे, जिससे दुखी परिवार जनों का आहत मन कुछ हद तक तसल्ली प्राप्त कर सके और इस बेहद अविस्मरणीय घटना को भूलकर जीने की जिजीविषा इकट्ठी करे। संतोष की बात यह है कि मध्य प्रदेश शासन ने फौरी तौर पर आहत परिवार जनों को एक सांत्वना राशि देने का ऐलान कर दिया है। साथ में क्षेत्रीय प्रशासन को हिदायत दी गई है कि पीड़ित परिवारों की परेशानियों और उनकी जरूरतों पर कड़ी नजर रखी जाए और जैसी भी परिस्थितियां निर्मित हों, उस बारे में तत्काल शासन को अवगत कराया जाए। ताकि इन परिवारों को जीने का हौसला दिया जा सके तथा उनकी जीवन यात्रा को यथासंभव सहज बनाने के प्रयास किये जा सकें। आवश्यकता इस बात की भी है की प्रशासनिक स्तर पर कुछ ऐसे सख्त कदम उठाए जाएं, जिससे जिम्मेदार अधिकारियों को एक सबक हासिल हो और भविष्य में इस प्रकार की लापरवाहियां फिर से अपने आप को ना दुहरा पाएं। जैसा कि अधिकांशतः होता आया है, उसके मुताबिक उम्मीद की जा रही थी कि इस मसले पर पहले जमीनी स्तर पर एक बड़ा बवंडर खड़ा होगा। राजनीतिक स्तर पर बयान बाजी होगी, जो की हो भी रही है। उसके बाद फिर मध्य प्रदेश शासन की संभावनाएं एवं संवेदनाएं जागेंगी । तत्पश्चात जवाबदेह अधिकारियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की जाएगी। लेकिन मानना पड़ेगा कि शासन ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए इस मामले में ज्यादा हाय तौबा नहीं मचने दी। बल्कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर दिखाई, जिन लोगों को इस हादसे के लिए प्रथम दृष्ट्या जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मसलन मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने सागर के कलेक्टर दीपक आर्य, एसपी अभिषेक तिवारी, संयुक्त कलेक्टर संदीप सिंह, क्षेत्र के एसडीएम, शाहपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर हरिओम बंसल और अन्य पांच अफसरों को तत्काल प्रभाव से हटा दिया। जबकि शाहपुर नगर पालिका के मुख्य कार्यपालन अधिकारी धनंजय गुमास्ता, उपयंत्री बी विक्रम सिंह को सस्पेंड किया जा चुका है। यही नहीं, दोनों ही मामलों के मकान मालिक कथा दूसरे मामले के धार्मिक आयोजनकर्ता संजीव पटेल पर केस दर्ज किया जा चुका है। यही नहीं, तत्परता बरतते हुए प्रशासनिक एवं विभागीय अधिकारियों की नई नियुक्तियां की जा चुकी हैं । उन्हें ताकीद किया गया है कि जल्दी से जल्दी दोनों ही मामलों की जांच की जाए तथा उसमें जो भी अधिकारी कर्मचारी दोषी पाए जाते हैं, उन सबके खिलाफ प्रभावशाली कार्रवाई की जाए। साथ में यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह के हादसे भविष्य में फिर कभी नहीं होने चाहिए।
लेकिन खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि विपक्षी लोग इन दुखदाई घटनाओं को भी राजनीतिक मुद्दा बनाने का कोई भी अवसर हाथ से चूकने देना नहीं चाहते। यही वजह है कि कभी सरकार से श्वेत पत्र मांगा जा रहा है, तो कभी इन मामलों को लेकर उसकी नीतियों की आलोचना की जा रही है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इस हादसे को केवल और केवल हादसा ही माना जाए। जिस प्रकार मध्य प्रदेश की मोहन सरकार ने तत्परता दिखाई है, उसकी हिम्मत बढ़ाई जाए। भविष्य में फिर ऐसी कोई दुर्घटना ना घटे, इस बारे में विपक्ष द्वारा पूरी जिम्मेदारी के साथ प्रदेश सरकार का सहयोग किया जाना चाहिए। लेकिन इसके ठीक उलट विपक्ष द्वारा सरकार को संवेदनहीन बताया जा रहा है। इस तरह की बयान बाजी को कतई मान्यता नहीं दी जा सकती। यह बात सही है कि जो कुछ हुआ है वह नहीं होना चाहिए था। लेकिन सरकार कोई सी भी हो, ना चाह कर भी इस प्रकार की कोई ना कोई घटना अथवा दुर्घटना घट ही जाती है। ऐसे में सरकार के साथ विपक्ष को भी चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझे तथा अनर्गल बयान बाजी से बाज आए। ऐसे नाजुक मौके पर सरकार की संवेदनाओं को चुनौती देना कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता।

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