विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक से ज़्यादा वज़न के कारण बाहर

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पेरिस| विनेश फोगाट ने ओलंपिक के फ़ाइनल में पहुंचकर करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया था. लेकिन ये ख़ुशी ज़्यादा समय तक नहीं रह पाई| विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक में ज़्यादा वज़न होने के कारण अयोग्य घोषित की गई हैं. विनेश अब ओलंपिक में कोई मेडल नहीं जीत सकेंगी. विनेश फोगाट महिलाओं के 50 किलो भार वर्ग के फ्री स्टाइल स्पर्धा में चुनौती पेश कर रही थीं. लेकिन बुधवार सुबह जब उनका वज़न किया गया तो उनका वज़न मान्य वज़न से कुछ ग्राम ज़्यादा पाया गया. भारतीय दल ने विनेश के वज़न को 50 किलोग्राम तक लाने के लिए थोड़ा समय मांगा लेकिन अंततः विनेश फोगाट को तय वज़न से कुछ अधिक भार के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया.

वज़न कम करना इतना ज़रूरी क्यों?
किसी भी रेसलिंग इवेंट भी हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों को अलग-अलग भार वर्ग में वर्गीकृत किया जाता है. रेसलिंग, बॉक्सिंग जैसे खेलों में ये तय तरीका है, जिससे सभी खिलाड़ियों के लिए निष्पक्ष मौका सुनिश्चित किया जाता है. आधिकारिक तौर पर पहली बार किए गए समय पर जो वज़न होता है, प्रत्येक खिलाड़ी को केवल उसी एक भार वर्ग में खेलने की इजाज़त होती है. वज़न के वक्त खिलाड़ी केवल सिंगलेट यानी स्लीवलेस शर्ट ही पहन सकते हैं. बढ़े हुए वज़न के मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता है.किसी भी भार वर्ग के मुक़ाबले के पहले दिन सुबह ही मेडिकल जाँच और वज़न किया जाता है. इस दौरान रेसलर मेडिकल परीक्षण से गुज़रते हैं. यहां क्वॉलिफ़ाइड फ़िजिशियन ऐसे किसी भी रेसलर को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं जिनसे कोई संक्रामण रोग फैलने का जोखिम हो. खिलाड़ियों को अपने नाख़ून भी छोटे-छोटे काटने पड़ते हैं. ये पहली प्रक्रिया करीब आधे घंटे तक चलती है. जो इन भारवर्ग के लिहाज़ से फिट पाए जाते हैं उन्हें खेलने दिया जाता है.

इसके बाद जो लोग फ़ाइनल के लिए क्वॉलिफ़ाई करते हैं, उन्हें दूसरे दिन की सुबह भी वज़न करवाना होता है. ये प्रक्रिया 15 मिनट तक चलती है. यूडब्ल्यूडब्ल्यू के नियम कहते हैं कि इस दौरान भी वज़न में किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता. नियमों के अनुसार, “वज़न करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान रेसलर के पास ये हक़ है कि वे कितनी भी बार मशीन पर वज़न करते हैं. इस प्रक्रिया के लिए चुने गए रेफ़रियों की ये ज़िम्मेदारी होती है कि वे सभी संबंधित भार वर्ग के प्रतिभागियों के वज़न की जाँच करें. साथ ही ये भी सुनिश्चित करें कि खिलाड़ी सभी आवश्यकताओं को पूरा करें. अगर किसी रेसलर पर किसी तरह का जोखिम है तो ये रेफ़री उसकी भी सूचना देते हैं.” अगर कोई एथलीट वज़न की प्रक्रिया पूरी नहीं करता या इसमें फेल हो जाए तो उन्हें प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाता है और सबसे आख़िरी पायदान पर रखा जाता है. अगर कोई फ़ाइनलिस्ट फ़ाइनल से पहले वज़न को लेकर अयोग्य घोषित होता है तो उसकी जगह सेमीफ़ाइनल में हारे खिलाड़ी को मौक़ा दिया जाता है. इसी तरह से विनेश के मामले में आईओसी ने फ़ैसला लिया है.

खिलाड़ियों में ‘वेट कटिंग’ कितनी आम बात
ओलंपिक में किसी भार वर्ग के मुक़ाबले के लिए कई बार खिलाड़ी अपना वज़न कम करते हैं, यह ‘वेट कटिंग’ कहलाता है. ऐसा दुनियाभर के खिलाड़ी करते हैं. खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता के कुछ सप्ताह पहले से अपना वज़न कम करना शुरू कर देते हैं. बीबीसी को एक स्पोर्ट्स न्यूट्रिशनिस्ट बताती हैं कि वज़न धीरे धीरे कम करना सुरक्षित होता है और कुछ हफ़्ते पहले करने में ख़तरे होते हैं.

फिर सवाल यह उठता है कि खिलाड़ी ऐसा क्यों करते हैं?

वरिष्ठ खेल पत्रकार विनायक डाल्वी कहते हैं, “ज्यादा वज़न वाले मुक़ाबले में अधिक वाले खिलाड़ी के ख़िलाफ़ मुक़ाबला करना, उससे कम वज़न वाले खिलाड़ी के लिए बड़े नुक़सान वाला होता है.” इस तरह की भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं जिसमें कोई खिलाड़ी टूर्नामेंट के पहले वज़न तौलने से पहले वज़न घटाते हैं और टूर्नामेंट से पहले वज़न भी बढ़ा लेते हैं. इसलिए ऐसी चीज़ों से ख़िलाफ़ साल 2017 में यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने इसके नियम बदल दिए. पहले वो एक भार वर्ग के सभी मुक़ाबले एक ही दिन में करा लेते थे. अब इसके यह मुक़ाबला दो दिनों में होता है ताकि कोई खिलाड़ी एक ही दिन में बहुत ज़्यादा वज़न कम कर मुक़ाबले में न उतर सके.

वजन घटाना मुश्किल क्यों है?
इंसानी शरीर में वज़न बदलता रहता है. कई बार ये वज़न एक दिन के अंदर ही बदल जाता है. ऐसे में मैच के दोनों दिन खिलाड़ी का वज़न किया जाता है. अगर कोई खिलाड़ी किसी ख़ास कैटगरी में जगह बना रहा है तो आपसे उम्मीद की जाती है कि आप दोनों दिन वज़न को एक जैसा बनाए रखें. ओलंपिक में खिलाड़ी जिस कैटगरी में क्वालिफाई करते हैं, उनसे उसी में खेलने की उम्मीद रहती है. अपने वज़न से कम कैटगरी में खेलना आसान नहीं होता है. ऐसा करने के लिए अपना वज़न घटाना होता है और टूर्नामेंट के दो दिन तक बरकरार रखना होता है. एक पूर्व पहलवान ने बीबीसी मराठी से कहा- ये एक मुश्किल काम है, जो लोग वजन घटाना चाहते हैं वो ये बात जानते हैं.

पहलवान के मुताबिक़, ”कई पहलवान जो कम वजन की कैटगरी में खेलना चुनते हैं, उनको अपना खाना पीना कम करना होता है. कुछ लोग भूखे रहते हैं और इसका असर शरीर पर दिखता है. खेल से पहले इस कमज़ोरी से भी उबरना होता है. ऐसे में ख़ुद के शरीर में ये बदलाव लाना आसान नहीं होता है. अगर किसी पहलवान का वजन बॉर्डर लाइन पर है तो उसे तनाव का सामना करना पड़ता है.” विनेश को पहले भी वजन के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. ओलंपिक 2016 में 48 किलो कैटगरी में विनेश को अपना वजन कम करना पड़ा था और ये चुनौतीपूर्ण रहा था. बाद में विनेश इस कैटगरी के तहत जगह बनाने और खेलने में सफल रही थीं. मगर बाद में चोट के कारण विनेश बाहर हो गई थीं. टोक्यो ओलंपिक में 53 किलो कैटगरी में विनेश खेली थीं मगर क्वार्टफाइनल में हार गई थीं. पेरिस में विनेश ने कुछ दिन पहले ही कम कैटगरी में खेलने और वजन कम करने का फ़ैसला किया. मगर अंत में कुछ ग्राम विनेश फोगाट पर भारी साबित हुए.

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