समाज के संतुलित विकास को लेकर सजग मध्य प्रदेश की मोहन सरकार

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किसी भी देश के लिए यह आवश्यक होता है की वहां के विकास में महिलाओं और पुरुषों की समान भागीदारी होनी चाहिए, और यह तब संभव हो पता है जब सामाजिक स्तर पर स्वयं समाज और सरकार महिला और पुरुषों के उन्नयन के बारे में गंभीरता से विमर्श करते हुए उनकी मजबूती हेतु सक्रिय और सजग बने रहते हैं। बात परिवार की हो, समाज की हो अथवा देश की। हर स्तर पर जब तक महिला और पुरुष दोनों ही वर्ग पूरी चैतन्यता और तत्परता से अपनी अपनी भूमिका नहीं निभाएंगे, तब तक किसी भी देश के समुचित विकास की कल्पना तक नहीं की जा सकती। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की हमारे देश ने मुगल हमलावरों के आने के बाद महिलाओं को लेकर एक गलत धारणा मन में पाल ली। वह ये कि महिलाएं केवल घर संभाल सकती हैं, बच्चे पैदा कर सकती हैं। सामाजिक और देश के विकास से इनका कोई लेना-देना नहीं। जबकि पुरातन काल में ऐसा नहीं था। हमने मां दुर्गा को शक्ति, मां लक्ष्मी को धन संपदा और मां सरस्वती को विद्या की देवी के रूप में मान्यता प्रदान की है। यहां तक कि मां को संतान का प्रथम गुरु माना है। जब भी अपने इष्ट देव को स्मरण करने की बात आई तो हमने राम से पहले सीता, श्याम से पहले राधा और शंकर से पूर्व गौरी को सम्मान दिया है। बात युद्ध का नेतृत्व करने की हो, राजपाट संभालने की हो या फिर सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की, अनेक कठिन हालात ऐसे आए जब भारतीय महिलाओं ने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित किया, जिनकी गाथाएं केवल पुराणों और ग्रंथों में ही नहीं बल्कि आधुनिक इतिहास में भी सर्वोत्कृष्टता के साथ दर्ज हैं। यह बात और है कि जैसे ही मुगल लुटेरे भारत में आए, उन्होंने अपने मूल देश में स्थापित परंपरा के अनुसार भारत में भी स्त्री को भोग की वस्तु मानने की परंपरा को जबरन स्थापित कर दिया। फल स्वरुप उनके अपहरण किए जाने लगे, जिसके चलते मजबूरी बस भारतीय परिवारों को अपने घर की माताओं ,बहनों और बेटियों को पर्दे जैसी बंदिशों में छुपा कर रखना पड़ गया। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के बाद भी हम यह समझ ही ना पाए कि कब उक्त मजबूरी हमारी दकियानूसी परंपरा में तब्दील हो गई। फल स्वरुप आज भी ऐसा मानने वाले लोग भारत में कम नहीं हैं,जिनके लिए महिलाओं का अस्तित्व केवल भोग वस्तु अथवा बच्चे पैदा करने का माध्यम मात्र बनकर रह गया है। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इस परंपरा और परिदृश्य को बदलने का संकल्प एक बार फिर दोहराया है। उनका इस बात पर पूरा ध्यान है कि बेटियां खुद इतनी समझदार बनें अर्थात उन्हें समझदार बनाया जाए कि जब उनके विवाह की बात चले और वैवाहिक खर्चों को पूरा करने के लिए माता-पिता के हिस्से की जमीन जायदाद बेचनी ना पड़ जाए तो स्वयं बेटियां ही इस परिपाटी का खुलकर विरोध करें तथा समाज में नए मानदंड स्थापित करने के लिए आगे कदम बढ़ाएं। उनकी मंशा यह भी है कि महिलाओं की पढ़ाई लिखाई और उनके संस्कार बचपन से ही ऐसे गढ़े जाने चाहिए कि वे बड़ी होने पर हर प्रकार के हालातो का मुकाबला करने के लिए खुद को आत्मनिर्भर केवल महसूस ही ना करें, बल्कि अपनी आत्मनिर्भरता को साबित भी कर पाएं। अपनी इस मंशा को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की है कि वह जल्दी ही कन्याओं और महिलाओं को व्यवसायिक प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम प्रस्तुत करने जा रहे हैं। इसके माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ उन्हें स्वाभिमानी बनाए जाने के प्रयासों को मूर्त रूप दिया जा सकेगा। खासकर महिलाओं को रेडीमेड वस्त्रों की श्रृंखला में पारंगत बनाए जाने की योजना पर कार्य शुरू किया जा चुका है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कलात्मक क्षेत्र में महिलाओं की रुचि पुरुषों से अधिक होती है और वे इस मामले में अपनी उत्कृष्ट हमेशा ही साबित करती आई हैं। आज जब टीकमगढ़ और विजयपुर में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव बहनों के बीच पहुंचे तो उन्होंने 2625 करोड रुपए लाडली बहनों के बैंक खातों में ट्रांसफर करते हुए उक्त आशय के विचार व्यक्त किए। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने महिलाओं को मितव्ययिता का पाठ पढ़ाया। बेहद गंभीरता से उन्होंने महिलाओं को समझाते हुए कहा कि उन्हें बेहद सावधानी के साथ अपना पैसा खर्च करने की आवश्यकता है। क्योंकि एक वही हैं जो सीमित संसाधनों में परिवार को चला सकती हैं और ज्यादा से ज्यादा बचत करके अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना सकती हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि व्यर्थ की वस्तुओं पर पैसा खर्च करने की बजाय यदि उन्हें अपने बेटों और बेटियों की पढ़ाई पर खर्च करने की आदत डालोगी तो आने वाले समय में विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूलता में ढालने का सामर्थ्य उन्हें अपने भीतर प्राप्त हो सकेगा। उनकी इस समझाइश की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि जब किसी भी व्यक्ति को सहज भाव से आय प्राप्त होने लगती है तब वह उसे खर्च करते समय सावधानी का ध्यान रखना भूल जाता है। फल स्वरुप उसके हिस्से में निराशाजनक भविष्य के अलावा और कुछ भी शेष नहीं रह जाता। चूंकि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार महिलाओं की बेहतरी के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना, लाडली बहना योजना, उज्ज्वला योजना सहित ढेर सारी लाभ देने वाली योजनाओं का संचालन करती आ रही है। इससे सामाजिक स्तर पर महिलाओं के प्रति समाज का व्यवहार काफी हद तक सुधर रहा है और उसके दृष्टिकोण में सकारात्मकता उत्पन्न हो रही है। सरकार चाहती है कि यह परिदृश्य स्थाई रूप से बना रहना चाहिए। जो राशि कन्याओं, महिलाओं एवं बुजुर्ग माताओं को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्राप्त हो रही है, वह उनके उज्जवल भविष्य में आवश्यकताओं की पूर्ति करती रहें। बल्कि समाज में उनका स्थान इतना सर्वोच्च हो जाए कि वह अपने परिवार के जरूरतमंद पुरुष वर्ग को भी आर्थिक संबल प्रदान कर पाएं। इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं सबसे पहले तो आत्मनिर्भर बनें, उनका स्वाभिमान गुजरते समय के साथ-साथ और अधिक मजबूती प्राप्त करता चला जाए तथा जैसे-जैसे उनकी आय बढ़े, वैसे-वैसे उनके अंदर परिपक्वता का प्रादुर्भाव हो और वे सामाजिक एवं देश के विकास में अपनी उच्चतम भागीदारी सुनिश्चित कर पाएं। क्योंकि ईश्वर द्वारा बनाई गई संरचनाओं में यदि मनुष्य उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति है तो नारी को सर्वोत्कृष्ट कृतित्व के रूप में मान्यता मिली हुई है। इस नजरिए से देखा जाए तो पुरुष वर्ग के साथ-साथ महिलाओं का भी शिक्षित, उन्नत और आत्मनिर्भर होना बेहद आवश्यक है। तभी भारत का भविष्य बेहद संतुलित सुनियोजित और सुनिश्चितता लिए हुए अपनी प्रामाणिकता को वैश्विक स्तर पर स्थापित कर पाएगा। बेहद संतुष्टि है कि मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव की भाजपा सरकार कन्याओं, महिलाओं और बुजर्ग माताओं को लेकर एक-एक कदम सावधानी के साथ जमाते हुए आगे बढ़ रही है। आश्वस्त हुआ जा सकता है कि उसके यह ईमानदार प्रयास मध्य प्रदेश की क्षमताओं और उसकी छवि को न केवल राष्ट्रीय वरन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति नाम बनाने वाले हैं।

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