दिल्ली के लाल किला प्रांगण में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की बैठक व्यवस्था को लेकर विपक्ष में आक्रोश देखने को मिल रहा है। ज्ञात ही है कि कांग्रेस नेता श्री गांधी को उक्त समारोह में आगे से पांचवी पंक्ति में बैठने की व्यवस्था की गई थी। कार्यक्रम संपन्न होने के बाद जैसे ही यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं ,वैसे ही कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के अधिकांश राजनीतिक दलों में असंतोष व्याप्त होता चला गया। इस आक्रोश को गैर वाजिब भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि प्रोटोकॉल के हिसाब से लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष का दर्जा एक कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है। वरिष्ठता के क्रम में उनका कद देश के प्रधानमंत्री के बाद आंका जाता है। आशय यह कि लोकतांत्रिक पद के हिसाब से उनकी बैठक व्यवस्था किसी भी कैबिनेट मंत्री के पीछे वाली पंक्ति में गरिमा के अनुकूल नहीं ठहराई जा सकती। जहां तक कांग्रेस की बात है तो वह एवं उसके नेता आरोप लगा रहे हैं कि यह सब भाजपा और संघ के इशारे पर हो रहा है। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि विभिन्न पदयात्राओं के माध्यम से राहुल गांधी ने लोकप्रियता हासिल करने का जो क्रम बनाए रखा है, उससे घबराकर सरकार द्वारा इस तरह के कृत्य किए जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एवं इंडिया गठबंधन के दलों ने अपनी जीत का दायरा बढ़ाया है। इसके चलते भी सत्ता पक्ष में घबराहट का माहौल है। अतः सरकार में बैठे भाजपा नेताओं और उन्हें सांकेतिक आदेश देने वाले संघ का प्रयास है कि येन केन प्रकारेण राहुल गांधी एवं कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। अब कांग्रेस और विपक्षी दलों के आरोप कितने सही हैं, यह तो तभी सामने आ पाएगा जब उनके द्वारा उठाई गई आपत्तियों को सरकार गंभीरता से ले और फिर यह पता लगाने का प्रयास करे कि स्वतंत्रता दिवस समारोह जैसे बेहद संवेदनशील कार्यक्रम में इतनी बड़ी चूक हो कैसे गई? संवेदनशील इसलिए, क्योंकि प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को आयोजित होने वाले इस बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम को लेकर सुरक्षा की दृष्टि से बेहद एहतियाती कदम लगभग एक महीने पहले ही उठा लिए जाते हैं। गृह विभाग बैठक व्यवस्था को आखिरी रूप देते वक्त दो बातों का बेहद बारीकी के साथ ध्यान रखना है। पहली बात यह कि पद अनुसार वरिष्ठता के क्रम में किस व्यक्ति कहां बैठाया जाना उचित रहेगा। दूसरी बात यह कि सुरक्षा की दृष्टि से अति विशिष्ट व्यक्ति की बैठक व्यवस्था कहां की जानी चाहिए। जहां तक गृह विभाग की बात है, तो यह चाहे प्रदेश स्तर का हो या फिर केंद्रीय स्तर का, दिल्ली महानगर की सुरक्षा व्यवस्था पर केंद्र सरकार की ही कमान है। इस लिहाज से अंततः केंद्र की मोदी सरकार पर ही उंगलियां उठना स्वाभाविक है। फिर भी यह दावे के साथ नहीं लिखा जा सकता कि स्वतंत्रता दिवस समारोह में नेता प्रतिपक्ष की बैठक व्यवस्था को लेकर हुई इस बड़ी चूक में केंद्र सरकार का कोई दुराग्रह पूर्ण व्यवहार रहा जवाबदेह रहा होगा। लेकिन यह भी सही है कि यह चूक किसकी वजह से हुई, इसका जवाब भी केंद्र सरकार में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों को ही देना होगा। क्योंकि दिल्ली महानगर में अथवा उस प्रांत में कार्यक्रम कोई भी हो, सुरक्षा संबंधी कमान केंद्र सरकार के हाथ में ही रहती है। क्या सही है और क्या गलत, यह तो आने वाला समय ही बेहतर बता पाएगा। लेकिन एक बात सही है कि श्री गांधी की बैठक व्यवस्था को लेकर देश के स्वतंत्रता दिवस समारोह में जो कुछ भी घटा वह सुरक्षा और सम्मान, दोनों ही दृष्टि से उचित कतई नहीं था। चूंकि इस गड़बड़ी के सबसे अधिक आरोप देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पर ही लग रहे हैं। तब उन्हीं से अपेक्षा शेष रह जाती है कि वे इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराएंगे और जो भी व्यक्ति इस मामले में दोषी पाया जाएगा उसे दंडित अवश्य करेंगे। उन्हें व्यक्तिगत रुचि लेते हुए इस मामले की तह तक इसलिए भी पहुंचना चाहिए, क्योंकि स्वयं राहुल गांधी भी अपनी सुरक्षा और अभिव्यक्ति के अधिकारों को लेकर श्री मोदी पर अनेक आरोप बढ़ते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि श्री गांधी द्वारा एक से अधिक बार यह कह जा चुके हैं कि जब वे लोकसभा में बोलने का प्रयास करते हैं तो उनका माइक बंद कर दिया जाता है। कभी उनके संसदीय पद छुड़ाने की साजिशें से रची जाती हैं, तो कभी उनके आवास खाली करने में बेहद तत्परता दिखाई जाती है। यहां तक कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नफरत की राजनीति करने के आरोप भी चस्पा करते रहे हैं। शायद यही वजह है कि स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान सामने आई बैठक व्यवस्था संबंधी चूक को लेकर विपक्षी दल इसमें नफरत की सियासत के एंगल को तलाशते दिखाई दे रहे हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि यह सब कांग्रेस नेता का आत्मसम्मान आहत करने की दृष्टि से जानबूझकर किया गया है। जहां तक प्रबुद्ध जनों की बात है तो वह ऐसी किसी भी साजिश की आशंकाओं को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते दिखाई नहीं देते। लेकिन यह जरूर कहते हैं कि जो कुछ हुआ वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि सत्ता और विपक्ष में रहना किसी भी नेता अथवा दल के हाथ में नहीं होता। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि देश के मतदाता जब किसी को सही मानते हैं तो उसे बेताज बादशाह बना देते हैं और जब उन्हें लगता है कि हमारे अधिकारों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है तो वही जानता अपने हृदय परिवर्तन को बगैर किसी हिचक के जाहिर कर देती है। फल स्वरुप पलक झपकते ही अनेक नेताओं और राजनीतिक दलों का भविष्य पल भर में परिवर्तित हो जाता है। लिखने का आशय यह कि कल तक जो सत्ता में थे आज उन्हें विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। भविष्य में आम जनता का मत क्या गुल खिलाएगा, इसका भी पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यानि कि देश में चुनावी हार जीत के लिहाज से कभी भी कुछ भी हो सकता है। जो सत्ता है मैं हैं वह विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर हो सकते हैं और जो विपक्ष में हैं जनता प्रसन्न होने पर उन्हें सत्ता के हिंडोले में भी झुला सकती है। जो भी हो, इस मामले की उच्च स्तरीय जांच अपेक्षित है। ताकि पता लगाया जा सके कि जो कुछ भी हुआ वह वाकई में केवल एक भूल चूक ही है या कुछ और। क्योंकि आजादी के बाद अनेक बार इस तरह के अनुभव भी हुए हैं, जब सत्ता पक्ष द्वारा ना चाहने के बावजूद कुछ चाटुकार किस्म के अधिकारी और कर्मचारी विपक्ष को नीचा दिखाने के प्रयास करते रहे हैं। भले ही यह बात किसी को अच्छी ना लगे, लेकिन इस तरह के कारिंदे खुद को सत्ता पर काबिज नेताओं और दलों की नजर में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए यदा कदा ऐसा करते रहते हैं। दरअसल में इस तरह के लोगों का कोई स्थाई धर्म ईमान नहीं होता। यह जिस भी सरकार के नेतृत्व में काम करते हैं, अपना बर्ताव उस सत्ता के अनुकूल न रखते हुए सत्ता पर काबिज नेताओं को खुश करने को समर्पित किए रहते हैं। सही कहा जाए तो इस तरह की कार्य प्रणाली से कभी किसी को लाभ नहीं हुआ, हां नुकसान आवश्यक हो सकता है। देश के लोकतांत्रिक हितों को ध्यान में रखकर कार्य करने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं में मतभेद की बजाय मनभेद का स्थान व्यापक होने की आशंकाएं इन अवसरवादी नौकरशाहों की वजह से बढ़ने लगती हैं। इस कार्य प्रणाली की जितनी निंदा की जाए कम है।