काश! म.प्र. शासन की महिला सम्मान संबंधी भावनाओं को समझ पाते

Blog

आत्मीय संतुष्टि का विषय है कि रक्षाबंधन का त्यौहार देश भर में हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया। देश विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों ने इस त्यौहार को पूरी श्रद्धा के साथ मनाया। सभी जगह पर बहनों ने अपने भाइयों को राखियां बांधी और भाइयों ने भी उन्हें स्नेह के प्रतीक उपहार भेंट किये। बहनों ने अपने भाइयों के उज्जवल भविष्य की मंगल कामनाएं की तो भाइयों ने उनकी रक्षा का संकल्प लिया। हालांकि आधुनिकता के नाम पर उच्च शिक्षित कुछ महिलाओं और लड़कियों द्वारा स्वयं को सामर्थ्यवान करार देते हुए अपनी रक्षा हेतु खुद को साबला कहना शुरू कर दिया है। किंतु जब बाऊ अपनत्व और सात्विक प्रेम की आती है तो अपने प्रिय जनों व परिवार जनों की सुरक्षा का ध्यान रखना मनुष्य का सहज स्वभाव बन जाता है। इसी स्वभाव के चलते भाइयों के मन में यह भाव सदैव बना रहा है, बना हुआ है और बना रहेगा कि उनकी बहनें जहां भी हैं ,सदैव सुरक्षित सुखी और संपन्न रहें। इस भाव की एक झलक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के व्यवहार में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। जब से सावन का महीना शुरू हुआ तभी से उन्होंने बहनों और उनके सुरक्षा सम्मान सशक्ति करण को प्रधानता देने वाले कार्यक्रमों का ताना बनाना शुरू कर दिया था। यह बात अपनी जगह सही है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें सभी नागरिकों की सुरक्षा और आवश्यकताओं का ध्यान रखना होता है। उक्त सभी जिम्मेदारियां को निभाते हुए उन्होंने बहनों को समर्पित कार्यक्रमों में भाग लेने वाले समय में कमी नहीं आने दी। बीते रोज जब पूरा देश रक्षाबंधन का त्योहार बना रहा था, तब भी डॉक्टर मोहन यादव अपनी समस्त जिम्मेदारियां को निभाते हुए बहनों को समर्पित कार्यक्रमों में समर्पित बने रहे। विपक्षी लोग भले इन आयोजनों को राजनीति से प्रेरित करार देते रहें। लेकिन बुद्धिजीवी लोग कहते हैं कि यदि राजनीति से प्रेरित होकर भी कोई अच्छे काम किए जाएं तो उन्हें सकारात्मक ढंग से ही लेना चाहिए तथा ऐसे आयोजन करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए, ताकि इस प्रकार के कार्यक्रम औपचारिकताएं पाते पाते सभ्य समाज के सहज स्वभाव बन जाएं और लोग परस्पर एक दूसरे के सुख दुख का ध्यान रखने लगें। लेकिन अभी बात महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को लेकर ही करना उचित रहेगा। जहां तक हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति मानने वालों की बात है तो लगभग सभी लोगों ने अपनी बहनों की सुरक्षा की कामना को लेकर उनसे रक्षा सूत्र बंधवाए और उनकी रक्षा का संकल्प लिया। लेकिन यहां एक सवाल भी पैदा होता है कि जिस देश में विभिन्न त्योहारों के माध्यम से महिलाओं की पूजा की जाती हो और उनका सम्मान किया जाता हो, यहां तक कि एक प्रदेश का मुख्यमंत्री वहां रहने वाली महिलाओं को अपनी बहन और कन्याओं को अपनी भांजियां मानता हो, वहां महिलाओं और कन्याओं पर विभिन्न अत्याचार आखिरकार होते ही क्यों है?
यह बात लिखने के लिए इसलिए बाध्य होना पड़ा, क्योंकि पूरा देश जब रक्षाबंधन मनाकर माता बहनों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रदर्शित कर रहा था, तब भी विभिन्न समाचार पत्रों में और इलेक्ट्रानिक माध्यमों में महिलाओं के प्रति अत्याचार देखने पढ़ने को मिल रहे थे। यहां तक कि इस पावन त्यौहार के रोज भी अखबारों के पन्ने बलात्कार की खबरों से विरत ना रहे। अभी हाल ही में जबलपुर के लोगों को यह अनुभव हुआ कि होटल से खाना खाकर घर लौट रहीं मेडिकल कॉलेज की दो जूनियर डॉक्टर्स का मनचलों ने कई किलोमीटर तक पीछा किया। भद्दे कमेंट्स किये ,हॉर्न बजाकर उन्हें व्यथित किया, कार में खींचने की कोशिश की गई। हद तो यह हुई कि ये मनचले लड़कियों के हॉस्टल तक पहुंच गए और वहां जूनियर महिला डॉक्टरों के बचाव में आए सुरक्षा गार्ड से विवाद तक करने से नहीं हिचके। फिर भी आलम यह है कि पुलिस कार्रवाई करने से बचती रही। सागर जिले में एक शिक्षक ने अपनी ही छात्रा अश्लील हरकत की लिहाजा उसे निलंबित करना पड़ गया। धार में मात्र 14 साल के नाबालिग किशोर ने डेढ़ साल की दुधमुंही बच्ची के साथ दुराचार करने का दुस्साहस कर दिखाया।
लिखने का आशय है कि हमारे समाज को यह क्या हो गया है। हम रक्षा सूत्र बांधने वाली अपनी बहनों का तो भला चाहते हैं, उनका सम्मान भी करते हैं। लेकिन जब दूसरों की बहन बेटी की बात आती है तो फिर हमारा नजरिया एकदम बदल जाता है। अवांछनीय हरकतें करते समय क्या युवा, क्या बुजुर्ग और क्या बालक, ये भूल जाते हैं कि वह जिन महिलाओं अथवा लड़कियों के साथ छेड़खानी एवं बलात्कार जैसी कुत्सित घटनाएं घटित कर रहे हैं, वह भी तो किसी की बहन हैं, किसी की बेटियां हैं। यह बात लिखते समय कलम इसलिए भी नहीं कांपती, क्योंकि इस तरह की अवांछनीय घटनाएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। पहले बुद्धिजीवियों को आशंका थी कि शिक्षा का अभाव देश प्रदेश के युवाओं को भटकाव का कारण बन रहा है। लेकिन ताजू अनुभव यह है कि हम लोग जैसे-जैसे शिक्षित, उच्च शिक्षित और तथा कथित रूप से सभ्य होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे महिलाओं, कन्याओं के प्रति यौन अपराधों की घटनाएं चिंताजनक तरीके से बढ़ती चली जा रही हैं। मतलब साफ है, हम शिक्षित हो रहे हैं लेकिन संस्कारों से हमारा नाता बहुत तेजी से टूटता चला जा रहा है। दावे के साथ लिखा जा सकता है कि जब हम कम पढ़े लिखे थे, तब पांचवी और आठवीं तक पढ़े लिखे लोगों को भी यह बात अच्छी तरह कंठस्थ हो जाया करती थी कि उन्हें दूसरों की मां बहन और बेटियों को भी उतना ही स्नेह और सम्मान देना है, जितना वे अपने घर की महिलाओं और कन्याओं को सम्मान देने के बारे में सोच रखते हैं। अपनत्व, सदाचार और सम्मान का स्तर यह था कि बेटी किसी की भी हो, वह अपनी बस्ती, अपने गांव, अपने मोहल्ले की बेटी हुआ करती थी। उसका विवाह अन्यत्र हो जाता था, तब उसकी ससुराल में उसके मोहल्ले के, उसके गांव के, उसकी बस्ती के लोग पानी तक नहीं पीते थे। आग्रह किये जाने पर बड़े गर्व के साथ तत्कालीन युवा कहते थे कि यह हमारी बहन बेटी है, हम इसके घर का पानी कैसे पी सकते हैं ?
एक आज के युवा हैं, इन्हें हर उस स्कूल और कॉलेज के आसपास किसी व्यभिचारी की तरह मंडराते देखा जा सकता है, जहां उन्ही की बस्ती की, उन्हीं के मोहल्ले की और उन्हीं के गांव की बेटी पढ़ने जा रही है। स्मार्टफोन जेब में लेकर घूम रहे और खुद को स्मार्ट समझने का मुगालता पाल बैठे आजकल के युवा कन्याओं और महिलाओं के लिए भरोसे की बजाय भय का सबब बनते जा रहे हैं। यानि देश प्रदेश और समाज को वर्तमान एवं भावी पीढ़ी की शिक्षा पर एक बार फिर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। हमें अपनी स्वयं की भावनाओं को टटोलना की आवश्यकता है कि जब हमने अपने बच्चों को तथाकथित “अच्छे स्कूल” में भर्ती किया था, तब हमने क्या कामना की थी। क्या एक बार भी यह सोचा था कि हमारा बच्चा सदाचारी, संस्कारी और महिलाओं, में लड़कियों का सम्मान करने वाला संभ्रांत नागरिक बनना चाहिए? या फिर हमने केवल एक ही कामना की थी कि हमारे बेटे का भविष्य उज्जवल होना चाहिए, आर्थिक रूप से उज्जवल, सुख सुविधाएं जुटाना के लिहाज से उज्जवल। बस हमारी भावनाओं के इन्हीं दो विकल्पों में हमारे देश का भविष्य छुपा हुआ है। देर से ही सही, हमें अपने बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ उनके संस्कारों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यह भी दिन के उजाले की तरह सत्य है कि इस महती कार्य को केवल सरकार अथवा पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। यहां सुधार लाने के लिए हमें यानि समाज को स्वयं भी पहल करनी होगी। केवल मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश की महिलाओं और लड़कियों को अपनी बहन भाजी मान लेने से समाज का भला नहीं हो सकता। हमें भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनके राजनीतिक व्यवहार में समाहित सकारात्मकताओं का अनुसरण करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *