उपद्रवियों पर मोहन सरकार की कड़ी कार्रवाई से विघ्न संतोषियों को सबक

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“मध्य प्रदेश शांति का प्रदेश है। कोई भी कानून को हाथ में ले, यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा”………………. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का यह संदेश सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। साथ में वह परिणाम भी सार्वजनिक होने शुरू हो गए हैं, जिसकी चेतावनी मुख्यमंत्री द्वारा अपनी इस पोस्ट में दी गई थी। उल्लेखनीय है कि बीते रोज समुदाय विशेष के लोगों ने मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में वहां के थाने का अचानक घेराव कर डाला। वहां पर मौजूद भीड़ द्वारा पुलिस और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। इससे भी मन ना भरा तो पुलिस थाने पर पथराव कर दिया गया। फल स्वरुप अनेक पुलिस अधिकारी और कर्मचारी घायल हो गए। इस घटना को तात्कालिक तौर पर इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया द्वारा काफी बढ़-चढ़कर दिखाया गया। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए यह लिखने में कतई गुरेज नहीं कि इस हरकत के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर मध्य प्रदेश की छवि बिगाड़ने की कोशिश की गई। जाहिर है इस तरह की कारगुजारी प्रदेश के मुख्यमंत्री को सहन होनी ही नहीं थी और हुई भी नहीं। फल स्वरुप उन्होंने तत्काल सोशल मीडिया पर उपरोक्त पोस्ट डाली जो इस लेख के प्रारंभ में प्रकाशित की गई है। जिसमें उन्होंने विस्तार से लिखा था-
आज छतरपुर जिले में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना जिसमें कुछ पुलिसकर्मियों के घायल होने की सूचना मिलने पर तुरंत उच्च अधिकारियों से घटना की जानकारी ली और जवानों के समुचित इलाज के निर्देश दिए। मध्यप्रदेश ‘शांति का प्रदेश’ है, कोई भी सुनियोजित तरीके से कानून को हाथ में ले यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मैंने पुलिस के उच्च अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि दोषियों की जल्द पहचान कर कठोर कार्यवाही की जाए, जिससे भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो। प्रदेश में शांति और सौहार्द बना रहे यही हमारी प्राथमिकता है।
इसी के साथ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने पुलिस और प्रशासन को जो संदेश सख्त कार्रवाई के दिए थे, उसके परिणाम अब सामने दिखाई देने लगे हैं। शहजाद हाजी नाम के जिस व्यक्ति को मुख्य उपद्रवियों की भीड़ में पहचाना गया था, उसके करोड़ों रुपए के अवैध बंगले को शाम होते-होते पुलिस ने धूल में मिला दिया। घटना के तत्काल बाद डेढ़ सौ से अधिक लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा चुकी है। जिसमें लगभग 50 लोग पहचाने जा चुके हैं, सौ अन्य लोगों की शिनाख्त किए जाने के प्रयास युद्ध स्तर पर किए जा रहे हैं। उपद्रवियों की उठापटक भी शुरू हो चुकी है और अनेक लोगों को पुलिस हिरासत में लिया जा चुका है। खबरें मिल रही है कि भीड़ में जितने लोग शामिल थे और जिन्होंने पुलिस थाने पर पथराव करके कानून व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयास किया, उन सभी के खिलाफ शिकंजा कसा जा चुका है। अब प्रदेश वासियों को परिणाम का इंतजार है। महाराष्ट्र में धार्मिक प्रवक्ता द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में दंगाइयों द्वारा जो कुछ भी किया गया, उसकी जितनी निंदा की जाए कम है। पहली बात तो यह कि जिस टिप्पणी पर इतनी हाय तौबा मचाई गई वह महाराष्ट्र प्रांत में की गई थी। अतः जो भी प्रतिक्रिया व्यक्त की जानी थी, उसे लेकर मध्य प्रदेश में बवाल मचाया जाना तो उचित ठहराया ही नहीं जा सकता। और फिर भीड़ इकट्ठा कर पथराव किए जाने की घटना तो किसी भी हाल में स्वीकार करने योग्य नहीं ठहराई जा सकती। क्योंकि भारतीय संविधान ने यदि हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार दिया है तो उसे यह दायित्व भी सौंप गए हैं कि ऐसा करते वक्त वह कानून व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयास नहीं करेगा और हिंसा का सहारा तो लेगा ही नहीं। जबकि छतरपुर में विरोध प्रदर्शन के नाम पर उपद्रव मचाया गया और पुलिस को निशाना बनाकर पत्थर बरसाए गए। इस घटना को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा जो कड़ा रुख अपनाया गया है वह प्रशंसनीय है। क्योंकि उपद्रवियों द्वारा जिसे आंदोलन अथवा विरोध प्रदर्शन बताया जा रहा है, सही मायने में वह एक दंगा था। उसमें शामिल प्रत्येक दंगाई को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश का हृदय प्रदेश कहा जाने वाला हमारा प्रांत सही मायने में शांति का टापू ही है। यहां सब लोग मिलजुल कर रहते हैं और एक दूसरे के सुख-दुख का ख्याल करते हुए समाज प्रदेश एवं देश की तरक्की में भागीदार बने हुए हैं। लेकिन अनुभव कहते हैं कि समय-समय पर कतिपय विघ्न संतोषियों द्वारा कुछ इस तरह की हरकतें करने के प्रयास किए जाते रहते हैं, जिनके माध्यम से कानून व्यवस्था को धर्म संकट में डाला जा सके। बीते रोज छतरपुर में वही सब हुआ। हम यह नहीं कहते कि किसी को अपनी आहत हुई भावनाओं का विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। लेकिन इसका एक संयमित और अहिंसक तरीका भी होता है। क्या ही अच्छा होता कि जो लोग स्वयं को आंदोलनकारी बता रहे हैं वे एकजुट होकर शालीनता के साथ पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारियों के पास पहुंचते। उन्हें लिखित या मौखिक रूप से अपनी आहत भावनाओं से अवगत कराते और उनसे कार्रवाई संबंधी पहल करने का आग्रह करते। एक खास बात और, महाराष्ट्र में जो टिप्पणी हुई वह बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों से आहत होकर की गई थी। प्रदर्शनकारियों ने उस टिप्पणी पर तो गौर किया लेकिन वह टिप्पणी क्यों की गई, उसके कारण पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी। यदि टिप्पणी की मूल वजह पर चिंतन किया गया होता तो फिर जो कुछ छतरपुर में हुआ वह होता ही नहीं। हालांकि इस बात की हिमायत भी नहीं की जा सकती कि यदि किसी का मन आहत हुआ तो वह किसी दूसरे की भावनाओं को आहत करने का अभियान छेड़ दे। अतः अपेक्षा यही की जा सकती है कि सरकार उक्त टिप्पणी को लेकर भी जांच की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी। लेकिन शेष लोगों को भी यह समझना होगा कि बांग्लादेश में जिन लोगों पर अत्याचार हुए उनके घर, मकान, दुकान, मंदिर, सब के सब जला दिए गए। एक प्रकार से टारगेट किलिंग का अभियान छेड़ा गया और बस्ती की बस्तियां आग हवाले कर दी गईं। लेकिन ताज्जुब है, धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले लोगों के मुंह में दही ही जमा रहा। इन्हें क्षण भर के लिए यह लगा ही नहीं कि बांग्लादेश में जिन्हें मारा काटा गया, जिंदा जलाया गया वे हमारे अपने लोग थे। तभी तो उन हत्याओं के खिलाफ आंदोलन और प्रदर्शन करने की जहमत तक नहीं उठाई गई। यहां भी हम एक अहिंसक आंदोलन की ही अपेक्षा रखते हैं, ना कि हिंसक प्रदर्शन की। वह सब तो ना हुआ और ना ही इन्हें वह सब करना था। लेकिन जब बांग्लादेश में हो रही हिंदुओं की हत्याओं से व्यथित होकर और बांग्लादेशी हालातों को केंद्र में रखकर किसी ने कोई टिप्पणी कर दी तो इन स्वयंभू आंदोलनकारियों का खून खौल उठा। बस आव देखा ना ताव और झुंड के झुंड घरों से निकल पड़े। अभी तक यह कारण समझ में नहीं आया कि उक्त भीड़ ने थाने को आखिर घेरा ही क्यों और नारेबाजी करने के साथ-साथ वहां पर पत्थर क्यों बरसाए?
यह जो कुछ हुआ इसकी जितनी निंदा की जाए कम है और दंगाइयों के खिलाफ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा जो सख्ती दिखाई गई वह प्रशंसा योग्य है। अंततः हम मध्य प्रदेश ही क्यों, देशभर में किसी को भी इस तरह की हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने की छूट तो नहीं दे सकते!

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