दिग्भ्रम और अनिश्चितता न शासन के हित में है, न आम जनता के

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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को मध्य प्रदेश दुग्ध संघ और सांची दुग्ध उत्पादन को लेकर अंतत: यह स्पष्ट करना ही पड़ा की सरकार कर्मचारियों अधिकारियों की छटनी करने नहीं जा रही है। न ही सांची को किसी अन्य प्रतिष्ठान में मर्ज करने की योजना है। अब सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री को यह बात क्यों करनी पड़ी? तो स्वयं कर्मचारी अधिकारी यह बता रहे हैं कि कांग्रेसी नेताओं द्वारा यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि मध्य प्रदेश की सरकार प्रदेश के दुग्ध संघ, उनका प्रबंधन और संचालन अमूल को सौंपने का मन बना चुकी है। इसके लिए शासकीय स्तर पर इस प्रतिष्ठान में कर्मचारियों अधिकारियों की जो स्वशासी कार्य प्रणाली खड़ी की गई थी, उसे भी ध्वस्त करने की तैयारी की जा चुकी है। यह अफवाह भी आम है कि सरकार ने दुग्ध संघ के प्रबंधन और संचालन के लिए कार्य कर रहे भारी भरकम अमले को नौकरी से बाहर करने का मन बना लिया है। यही वजह है कि इस नेटवर्क में कार्य करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के मन में अनिश्चितता का माहौल पैदा हो रहा था। नौकरी को लेकर जो भ्रम एवं अनिश्चितता की स्थिति बन रही थी, उसने फिलहाल तो सांची दुग्ध संघ से संबंधित कारिंदों को हलाकान कर रखा था। यह बात जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के समक्ष आई तो उन्हें कर्मचारियों अधिकारियों के बीच यह स्पष्ट करना पड़ गया कि सांची मध्य प्रदेश शासन का ब्रांड है। आम आदमी के बीच इस ब्रांड की बेहद सम्मानजनक वैल्यू है। न तो सरकार इसका नाम बदलने जा रही है और ना ही किसी की नौकरी जाने का अंदेशा है। इससे उलट डॉक्टर मोहन यादव ने यह भरोसा दिलाया कि हम इस संस्था को और अधिक सक्षम बनाने जा रहे हैं। यदि अंदरखाने की बात करें तो सांची दूध एवं इसके दुग्ध उत्पादों को लेकर विश्वसनीयता हमेशा संदेह के घेरों में रही है। यहां समय-समय पर दूध में मिलावट, दूध की चोरी और उसमें विभागीय अमले की मिलीभगत सामने आती रही है। उससे भी बुरी बात यह कि जो लोग जांच में अथवा प्रबंधन में दोषी पाए गए, उन पर कठोर कार्रवाई करने के मामले में भी उच्च अधिकारियों का ढुलमुल रवैया ही देखने को मिला। फल स्वरुप यह धारणा और मजबूत हुई कि कुछ भी हो जाए सांची अथवा मध्य प्रदेश दुग्ध संघ में कुछ भी सुधरने वाला नहीं है। इससे भी ज्यादा नुकसान उस साजिश के तहत दर्ज किया गया, जिसके तहत यहां बैठा अधिकारियों का एक समूह दूध के एक अन्य ऐसे ब्रांड को प्रचारित और प्रसारित करने में लगा हुआ है जिसका सांची से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी इस आशय की शिकायतें छनकर बाहर आती रही हैं कि यहां का प्रबंधन अप्रत्यक्ष रूप से फुटकर दूध विक्रेताओं पर एक सुनियोजित रणनीति के तहत यह दबाव बनाता है कि उसे 10 नहीं तो 5 प्रतिशत दूध उस ब्रांड का भी खपाना चाहिए जो मध्य प्रदेश के एक जाने-माने राजनीतिक परिवार की संपत्ति है। यही नहीं, कभी सांची ब्रांड कि उनुपलब्धता का बहाना बनाकर तो कभी परिवहन संबंधी कमी बताकर दूसरे ब्रांड को जबरदस्ती फुटकर दूध विक्रेताओं के सिर थोपने की घटनाएं भी आम होती जा रही थीं। जाहिर है इन साजिशों के चलते एक ओर सांची ब्रांड और अधिक कमजोर होने जा रहा था। वहीं इस बात का अंदेशा भी समझ में आने लगा था कि ऐसा करने के लिए प्रबंधन में बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को बाहर से व्यक्तिगत लाभ पहुंचाय जा रहा था। ऐसे अवसरवादी एवं मुनाफाखोर तत्व उपरोक्त दूसरे ब्रांड को बाजार में स्थापित करने के जी तोड़ प्रयास में जुटे हुए थे। फिर भले ही सांची का सत्यानाश क्यों ना हो जाए। जाहिर यह सभी कारगुजारियां अब मध्य प्रदेश सरकार की निगाह में है और अब उन सभी कमियों का समूल नष्ट करने की गरज से मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा एक नया प्रयोग हाथ में लिया गया है। इसके तहत राष्ट्रीय डेरी बोर्ड के साथ एक एमओयू साइन हुआ है। जिसके तहत सांची को भी सफलता की उन्ही ऊंचाइयों पर स्थापित करने का उद्यम सरकार ने शुरू किया है जिन बुलंदियों को गुजरात सहित अधिकांश प्रांतों में अमूल हासिल कर चुका है। उसने यह कामयाबियां कैसे हासिल कीं और कौन सी रणनीति अपनाई गई, यह सब जानने समझने एवं व्यवहार में लेने के लिए बाकायदा सांची के साथ अमूल को जोड़ा जा रहा है। ताकि उसके अनुभवों का लाभ सांची तथा मध्य प्रदेश की दूध उत्पादन प्रणाली को भी मिल सके। इस नवाचार की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। लेकिन अफसोस होता है यह जानकर, कि खुद को देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल कहने वाला कांग्रेसी कुनबा इस नवाचार को लेकर भी भ्रम एवं अनिश्चितता का माहौल फैलाने की कोशिश में जुटा हुआ है।

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