म.प्र. सरकार किसान हितैषी, दिग्भ्रमित कर रहे विरोधी नेता

Blog

मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सोयाबीन की खरीदी के लिए अनुमति मांगी, जो तत्काल प्रभाव से उसे मिल भी गई। इससे यह तय हो गया कि आने वाली सोयाबीन की फसल को मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार 4892 रुपया प्रति कुंटल के हिसाब से खरीदने जा रही है। इससे एक ओर किसानों को सोयाबीन के अधिकतम दाम मिलने जा रहे हैं, वहीं यह सुनिश्चितता हो गई है कि जब फसल कहीं भी ना बिके तो किसान सरकारी खरीदी केंद्र पर अपने सोयाबीन को कम से कम 4892 रुपया प्रति कुंटल के हिसाब से तो बीच ही सकेगा। इसके अलावा महंगे दाम पर मंडियों में और मंडियों के बाहर सोयाबीन बेचने का रास्ता प्रदेश और केंद्र सरकार द्वारा खुला रखा गया है। यानि किसान को लगता है कि उसकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम पर बिक सकती है तो वह अपनी फसल को कभी भी कहीं पर भी बचने के लिए आजाद है। इसके बावजूद मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन का दौर बना हुआ है। यह लिखने में कोई संदेह नहीं है कि यह सब उन आंदोलन जीवी किसान नेताओं की कारगुजारी है जो पहले एक साल से अधिक समय तक देश की राजधानी दिल्ली को बुरी तरह जाम कर चुके हैं। इन्हीं के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के दौरान राजधानी के भीतर खासकर लाल किले पर अराजकता का माहौल स्थापित किया जा चुका है। यदि उसे समय दिल्ली के नागरिकों के विचार विशेष तौर पर याद किए जाएं तो यह समझ आ जाता है कि उसे समय पर पुलिस में संयम से कम ना लिया होता तो दिल्ली में भारी स्तर पर जनहानि भी हो सकती थी। यही वे आंदोलन जीवी किसान नेता हैं, जिनके नेतृत्व में चल रहे दिल्ली जाम के दौरान खालिस्तान जिंदाबाद एवं भारत विरोधी अनेक नारे ट्रैक्टरों पर बंधे हुए बैनरों में पढ़ने को मिले थे। अब यह नेता दिल्ली में बहुत बड़ा कुछ कर नहीं पा रहे। क्योंकि केंद्र की एनडीए सरकार एक के बाद एक किसानों के हित में फैसले लेती जा रही है। मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने भी यही पैटर्न अपनाया है। सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी इन्हीं किसान हितैषी फैसलों में से एक है। लेकिन राकेश टिकैट हों या फिर शिवकुमार शर्मा काका जी, इन सब का मन अभी आंदोलनों से भरा नहीं है। उनकी मंशा को देखकर प्रतीत होता है मानो आंदोलनों को इन्होंने अपना व्यवसाय बना लिया है। यदि आंदोलन खत्म हो गए तो उनकी आर्थिक व्यवस्थाएं बिगड़ जाएगी। फल स्वरुप इनके द्वारा कभी जाम तो कभी ट्रैक्टर रेलियां आयोजित करने के प्रयास जारी है। यहां किसानों से आग्रह किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है कि उन्हें मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार के कृषक हितैषी निर्णय को पहचानना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए। क्योंकि यह सरकार उनके पक्ष में एक के बाद एक निर्णय ले रही हैं । जबकि राकेश टिकैट और शिवकुमार शर्मा उर्फ काका जी जिन राजनीतिक दलों को अपने आंदोलन के माध्यम से समर्थन देते रहे हैं, उन राजनीतिक दलों द्वारा शासित अन्य प्रदेशों में किसानों की सुध भी नहीं ली जा रही। यहां किसान नेताओं से यह सवाल किया जाना उचित प्रतीत होता है कि यदि वे किसान हितैषी हैं, तो वह जिस कांग्रेस, वामपंथी दलों और भाजपा विरोधी राजनेताओं को समर्थन देते रहे हैं, उन दलों, नेताओं द्वारा शासित प्रदेशों में फसलों के दाम क्यों नहीं बढ़वाते? वहां पर अधिक से अधिक दाम पर खरीदी के लिए सरकारों को मजबूर क्यों नहीं करते? उन राज्यों में चक्का जाम न करने के पीछे क्या मजबूरी है? क्यों उन्हें हर मामले में केवल और केवल भाजपा और भाजपा द्वारा शासित प्रदेश ही गलत नजर आते हैं? जबकि सिंचाई, खाद, बीज, बिजली और फसल खरीदी के मामले में मध्य प्रदेश सरकार अनेक कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है। कृषि तेजी से फायदे का सौदा बन रही है। यही वजह है कि हर प्रकार की फसलों का रकबा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। लेकिन आंदोलन जीबी किसान नेताओं को यह सब दिखाई नहीं देता। उन्हें केवल अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना उचित प्रतीत होता है। किसानों को इस सच्चाई को समझना होगा। क्योंकि इन्हीं नेताओं के द्वारा उठाई गई मांगों के चलते वैश्विक स्तर पर हमारा बासमती चावल दिक्कतों का सामना कर रहा है। इन्हीं नेताओं ने बासमती चावल के दाम इतने ज्यादा बढ़वाए थे कि अब भारतीय चावल अत्यधिक महंगा होने से वैश्विक बाजारों में उसे कोई नहीं खरीद रहा। नतीजा यह है कि किसान की नई फसल की तैयारी है लेकिन गोदाम पहले से भरे पड़े हैं। कुल मिलाकर धान खरीदी पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है। अब व्यापारी आगे आकर बासमती धान के भाव कम करने की मांग करने को मजबूर नजर आ रहे हैं। ताकि भाव कम हो तो भारत का धान वैश्विक बाजारों में बिकना शुरू हो और गोदाम खाली हों तब न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दोबारा फसल खरीदी जा सके। किसानों को बाजार की इस नब्ज को भी समझना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *