ऐसे संयोग बहुत कम बनते हैं जब हम पितरों के तर्पण कार्य से निवृत हो रहे हैं। देश के दो महान सपूत महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मना रहे हैं। वही आदिशक्ति मां दुर्गा के आगमन की तैयारी में जुट गए हैं। कितना सुंदर परिदृश्य है! इसे देखना केवल भारतीय संस्कृति में ही संभव हो पाता है। परमपिता परमात्मा की असीम अनुकंपा से जिन पूर्वजों ने ईश्वर द्वारा स्थापित सृष्टि के सतत् संचालन की कामना के साथ हमें जन्म दिया, हम उनके अनंत काल तक आभारी हैं। पुरातन कालीन मान्यताओं के अनुसार यदि किसी कारणवश हमारे पितरों को मोक्ष प्राप्त नहीं हो पाया है, या फिर उन्हें किसी संतोषजनक लोक की प्राप्ति नहीं हो पाई है और वे दुर्भाग्यवश प्रेत लोक में भ्रमण करने को बाध्य हैं। उनकी अनेक प्रकार की क्षुधाएं शांत हों, अपूर्ण कामनाओं के चलते यदि भटकाव शेष है तो उसमें स्थिरता आए, यदि हमारे पापपूर्ण कृत्यों के कारण उनका मन अशांत है तो ईश्वर की कृपा उन पर बनी रहे और हमारे पूर्वज हम पर प्रसन्न बने रहें। इस कामना के साथ पितृपक्ष के दौरान हम सभी हिंदू मतावलंबी उनका तर्पण करते हैं, उन्हें पानी देते हैं। उनकी पसंद के विभिन्न प्रकार के व्यंजन गौ माता, कागा और श्वान को अर्पण कर अंतर मन से संतुष्टि का अनुभव प्राप्त करते हैं। यह हमारा पितरों के प्रति श्रद्धा का भाव है। जिसका हाल ही में बीते एक पखवाड़े के दौरान हमने मन कर्म और वचन से विधि अनुसार यथासंभव पालन किया है। अब जब पितरों के प्रति इस दायित्व का निर्वहन पूर्णता को प्राप्त हो रहा है तब हम महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मना रहे हैं। देश के इन दोनों महान सपूतों के प्रति भी हमारी निष्ठाएं निस्संदिग्ध हैं। महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्तित्व जिन्होंने संपूर्ण भोगों का त्याग करते हुए आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब आजादी मिल गई तब “तेरा तुझको अर्पण” इस भाव के साथ प्राप्त स्वतंत्रता के प्रसाद को मां भारती के चरणों में निस्वार्थ भाव से समर्पित कर दिया। आजादी की लड़ाई में लाल बहादुर शास्त्री के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी सादगी अप्रतिम है और उनके द्वारा स्थापित दायित्वोध के मापदंड हमें शिक्षित प्रशिक्षित एवं संस्कारित करते हैं। आजाद भारत की स्वदेशी सरकार में किंचित मात्र चूक का एहसास भर हो जाने पर महानतम पद को पल भर में तिलांजलि दे देने का आदर्श हमें श्री लाल बहादुर शास्त्री से ही सीखने को मिलता है। 2 अक्टूबर भारत के इन दोनों महान सपूतों का जन्म दिवस है, जो हमें एक आदर्श जीवन जीने के संस्कार प्रदान करता है। यदि हमारे देश के राजनेता इन दोनों महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से सीख लेना शुरू कर दें तो वर्तमान राजनीति में जो परिवारवाद, पदलोलुपता और भ्रष्टाचार का दीमक लग गया है, उससे हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। इस कालखंड का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है शरदीय नवरात्रों का शुभारंभ। 3 अक्टूबर से आदिशक्ति मां भवानी नौ दिनों के लिए हम सब पर कृपा करने हेतु हमारे घर, आंगन और रिहायशी बस्तियों में पधार रही हैं। 9 दिनों तक घर-घर में कन्याओं का पूजन होगा। माता बहनों के प्रति सम्मान के संस्कार मजबूती प्राप्त करेंगे। ऐसे दृश्य केवल और केवल भारतीय संस्कृति में देखने को मिलते हैं। इस नौ दिवसीय महापर्व से हम समझ सकते हैं कि हमारे सनातनी पूर्वज किन निष्ठाओं और समर्पण के भाव से नारी का सम्मान करते रहे होंगे। देवासुर संग्राम के दौरान जब आदि देव भगवान भोलेनाथ को लगा की असुरों का सर्वनाश कर चुकी महादेवी महाकाली का क्रोध उनके चरणों में लेट कर ही शांत किया जा सकता है, तो उनके पति होने के बावजूद बगैर किसी सोच विचार के मुझे ऐसा करना ही चाहिए, और उन्होंने ऐसा कर दिखाया। भगवान भोलेनाथ का यह आचरण इस आदर्श को स्थापित करता है कि जहां नारी सम्मान की अधिकारिणी है, वहां उसे सम्मान देने में मानव समाज को संकोच करने की कतई आवश्यकता नहीं है। वैसे भी नारी जन्मदायिनी नारायणी है। हम जीव मात्र का भला कर पाएं, हमारे भीतर इस आशय के संस्कार गढ़ने वाली नारी मां शारदा है। अपनी संतान पर संकट आया देख शत्रु के लिए साक्षात मृत्यु बन जाने वाली नारी महाकाली है। इस दृष्टिकोण से सोचा जाए तो नारी हर स्वरूप में पूजा के योग्य है। इस प्रकार के उच्च आदर्श हमारे पूर्वज, हमारे देवता और त्रिदेव कहे जाने वाले ब्रह्मा विष्णु और महेश अनंत काल से स्थापित किए हुए हैं। हम उनके द्वारा स्थापित आदर्शों का अनुसरण कर पाएं, माता बहनों और बेटियों को उनका सम्मान वापस लौटा पाएं। समूचा मानव समाज “यत्र नार्यस्तु पूर्जयंते रमंते तत्र देवता” का भाव अपना कर उनकी महत्ता को स्वीकार करे, हम ऐसे संस्कार अपनी भावी पीढ़ियों को दे पाएं, परमपिता परमात्मा से यही प्रार्थना है।