नूतन और पुरातन के संग मप्र शासन संस्कार युक्त विकास की ओर अग्रसर

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यदि हम अपनी मिट्टी से जुड़कर रहे तो सदैव ही जीवंत एवं हरे भरे बने रहेंगे। ऐसा ज्ञान विज्ञान तो कहता ही है, मानवता का सिद्धांत भी इसी पक्ष का हामी है। मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने इस मर्म को समझा है। यही वजह है कि उसके द्वारा विकास के जो नए मापदंड स्थापित किया जा रहे हैं, उनमें भारतीय संस्कारों का समावेश तो है ही, साथ में नूतनता और पुरातनता के बीच सामंजस्य का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि विश्व के ऐसे अनेक देश हैं जिन्होंने अपने स्थानीय संस्कारों और संस्कृतियों को साथ लेकर विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हासिल कर ली है। ऐसे देशों में जापान का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। एक ओर जहां पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में दिग्भ्रमित कुछ राष्ट्र अंग्रेजी के पिछलग्गू बने हुए हैं, वहीं जापान ने अपनी क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों के सहारे विकास के नए सोपान स्थापित कर दिखाए हैं। निसंदेह भारत की वर्तमान केंद्र सरकार भी हमारे पुरातन संस्कारों को साथ लेकर विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रही है। वहीं केंद्र सरकार के आदर्शों का अनुसरण कर मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने भी संस्कार युक्त विकास यात्रा का संकल्प कर लिया है। यही वजह है कि अब मध्य प्रदेश में पहचान के उन चिन्हों को तलाशा जा रहा है जो क्षेत्र विशेष के प्रमुख उत्पाद हो सकते हैं। उदाहरण के लिए – जब भाजपा शासित मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट दमोह जिला अंतर्गत सिंग्राम पुर में पहुंची तो वहां श्री अन्न योजना को रानी दुर्गावती की स्मृति में नामांकित किए जाने का निर्णय लिया गया। साथ में यह भी सुनिश्चित किया कि कोदो कुटकी उत्पादक किसानों को 3900 प्रति हेक्टेयर की आर्थिक सहायता सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी। इसके लिए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने 39 करोड रुपए मंजूर किए जाने की घोषणा भी की। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि भारतीय कृषि व्यवस्था जब रसायन युक्त जहरीली खाद के चक्कर में पड़कर केवल गेहूं और धान जैसी खेती के आसपास सिमट कर रह गई है, तब अधिकांश भूभाग से पारंपरिक कृषि उत्पादों से ध्यान हटता चला जा रहा है‌। इससे एक ओर खेत की जमीन पर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं, वहीं खानपान में थाली का संतुलन बिगड़ रहा है। जबकि हमारे पारंपरिक कृषि उत्पादन जिनमें कोदो कुटकी जैसे खाद्य पदार्थ शामिल हैं, इनमें पौष्टिकता भरपूर है और व्यंजनों के लिहाज से विविधता भी। अभी तक की पूर्व सरकारें इन विविधताओं से बेपरवाह बनी रहीं। इससे कृषि भूमि और कृषक दोनों का नुकसान होता रहा। वहीं आम आदमी पौष्टिक खाद्य पदार्थों से महरूम बना रहा। लिखने में संशय नहीं कि यह सब केवल इसलिए हो पाया क्योंकि अभी तक सरकारें केवल पश्चिमी सभ्यता द्वारा प्रदत्त कृषि व्यवस्था पर केंद्रित बनी रहीं। इससे भारतीय उत्पादों की ओर से किसानों का ध्यान हटता चला गया। फल स्वरुप उन्हें तो आर्थिक नुकसान हुआ ही, आम आदमी की थाली से भी विविधता युक्त पौष्टिकता गायब होती चली गई। लेकिन हमारे स्थानीय उत्पादन, संस्कृति और संस्कार शर्म का नहीं बल्कि गौरव का विषय हैं, इस बात को जहां केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आत्मसात किया है, वहीं मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने भी इसी लीक पर चलना शुरू कर दिया है। इसी कार्य प्रणाली के चलते अब चाहे पुरानी पहचान हो, विकास के पुरातन ढांचे हों, गौरव के पुरातत्व कालीन स्मारक हों, इन सभी को समान रूप से चिन्हित किया जा रहा है।
कार्य करने की इस पद्धति से अब सरकार के दृष्टिकोण में बड़ा परिवर्तन दिखाई देता है। अब तक प्रगति अर्थात विकास के मायने कंक्रीट के जंगल और चमचमाती विदेशी बहु मंजिला इमारतें मानी जाती रही हैं। लेकिन जब से केंद्र और मध्य प्रदेश में भाजपा शासित सरकारें अस्तित्व में आई हैं तब से भारत के पुरातत्व कालीन विकास के गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित किये किए जाने की मुहिम सी चल पड़ी है। अब यह वास्तविकता सामने लाई जा रही है कि हमें बाहरी देशों की चकाचौंध से प्रभावित होकर आगे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि हम तो ऐसी संस्कृति के पुरोधा रहे हैं जो अखिल विश्व को शिक्षित और सुसंस्कारित करती रही है। जहां तक विकास की बात है तो महेश्वर, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर आदि मध्य प्रदेश के ऐसे महानगर हैं जो विदेशी आक्रांताओं के आगमन से पूर्व सभ्यता के अनेक कीर्तिमान गढ़ चुके थे। यह बात और है कि पहले हमारी स्थानीय सभ्यताओं को विदेशी आक्रांताओं ने कुचला और फिर आजादी के बाद अस्तित्व में आईं हमारी अपनी सरकारें इस ओर से बेपरवाह बनी रहीं। पाठशालाओं के पाठ्यक्रम से भी भारतीय गौरव की स्मृतियों को लगभग मिटा दिया गया। जिसके चलते पश्चिमी देशों का अनुसरण किया जाना हमारे लिए बाध्यकारी हो गया। इसके दुष्प्रभाव यह हुए कि मध्य प्रदेश समेत देश के अधिकांश भूभाग में यह मान्यता स्थापित होती चली गई कि हम तो विकास और सभ्यता को जानते ही नहीं। यदि मुगल और अंग्रेज भारत ना आते तो शायद हमें विकास के मायने पता ही नहीं चलते। ऐसी मान्यताओं ने हमें भारतीयता से लगातार दूर किया। जिसके चलते स्थानीय जनमानस यह भूलता चला गया कि हमारे पूर्वज हर क्षेत्र में पहले ही इतनी तरक्की कर चुके थे, जिनका अध्ययन करके अब पश्चिमी सभ्यता संभ्रांत होने का दिखावा कर पा रही है। लेकिन अब हमारे अपने भीतर की छुपी हुई खूबियों को वर्तमान सरकार ने पहचाना है। यह सरकार उन्हें उजागर करने का काम कर रही है। इससे भरोसा हो चला है कि निकट भविष्य में मध्य प्रदेश समेत समूचा भारत अपने बल पर अपनी पुरातन संस्कृति के सहारे विकास के नए सोपान स्थापित करेगा और हम एक बार फिर विश्व गुरु के पद पर स्थापित होंगे।

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