यह पहली बार नहीं है जब बारिश के दौरान प्रदेश भर में अधिकांश सड़कें सर्वनाश को प्राप्त हो चुकी हैं। हालात ये हैं कि कई जगह पर सड़कों का डामर बारिश के पानी के साथ न जाने कहां बह गया। वहीं अनेक स्थानों पर सड़कों की जगह गिट्टियों के ढेर देखने को मिल रहे हैं। अनेक जगहों पर शेष बची रह गई सड़कों के गड्ढे इतने अधिक गहरे हैं कि इनमें गिर कर वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। यही नहीं, इनकी वजह से बड़े हादसे घटित होने की आशंकाएं बनी हुई हैं। हम यह नहीं कहते कि प्रदेश भर में सड़कों की यह दुर्दशा पहली बार हो रही है। दरअसल प्रत्येक बारिश के बाद सड़कों का उखड़ना और पानी के साथ बह जाना अब एक परिपाटी बन गया है। एक सामान्य कार्य प्रणाली के तहत अप्रैल और मई के महीनों में नई सड़कें बनती दिखाई देती हैं। इसी दौरान सड़कों के मरम्मत कार्य भारी पैमाने पर होते नजर आते हैं। ऐसा माना जाता है कि प्रचंड गर्मी के दौरान डाली गई सड़कें मजबूत रहती हैं और उनकी पकड़ जमीन से अधिक समय तक बनी रहती है। अतः दावे किए जाते हैं कि खासकर मई के महीने में डाली गई सड़कें अधिक तापमान के चलते उच्च गुणवत्ता को प्राप्त हो जाती हैं। लेकिन सड़क टिकाऊ हों, इसके लिए निर्माण सामग्री का गुणवत्ता युक्त होना भी आवश्यक होता है। जबकि देखने में यह आ रहा है कि सड़कें कभी भी डाली जाएं, अब इनका टिकाऊ पन ज्यादा नहीं रह गया है। कहीं-कहीं तो देखने में यह आता है कि मई के महीने में डाली गई सड़कें बारिश के पहले ही उखड़ना शुरू हो जाती हैं। मानसून के दौरान तो एक प्रकार से इनका सर्वनाश ही हो जाता है। विभागीय सूत्रों की माने तो इस बर्बादी के लिए मौसम कम, भ्रष्ट नौकरशाही ज्यादा दोषी है। इनका कहना है कि शासकीय निर्माण के ठेके प्राप्त करने के लिए पहुंच विहीन ठेकेदारों द्वारा ब्लो रेट का सहारा लिया या जाता है। फल स्वरुप निर्माण सामग्री की गुणवत्ता घटना तत्समय ही तय हो जाती है। जबकि इनका सत्यानाश तब सुनिश्चित होता है जब निर्माण कार्य के भुगतान के दौरान बड़े पैमाने पर कमीशन का खेल होता है। ठेकेदार इस काली कमाई के अंदेशे को लेकर पहले से ही सावधान रहते हैं। उन्हें पता है, भुगतान तभी मिलेगा जब बिल पास करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों की भेंट पूजा हो जाएगी। इस खर्च को ध्यान में रखते हुए पहले से ही सड़कों को घटिया सामग्री से बनाया जाता है। ताकि बंदरबांट हो जाने के बावजूद मुनाफा पर्याप्त बना रहे। यही वजह है कि घटिया सड़कें बनती रहती हैं और जिम्मेदार अधिकारी ठेकेदारों की बेजा करतूतों की ओर से आंखें फेरे रहते हैं। जब कभी मीडिया इस बाबत बवाल मचाता भी है तो जिम्मेदार लोगों और ठेकेदारों के खिलाफ शो कॉज नोटिस जारी करके दायित्वों की इति श्री कर दी जाती है। मेल-जोल के आधार पर काम करने वाले ठेकेदार भी अपने कृपा पात्र अधिकारियों की ज्यादा थुक्का फजीहत होने पर पेचवर्क करके मामले को सुलटा देते हैं और विभाग भी तुरत फुरत सुधार रिपोर्ट प्रस्तुत कर देता है। तब सवाल यह उठता है कि इस बारे में कभी भी निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं होती? इस बारे में ठेका पद्धति के जानकार लोग बताते हैं कि सड़क निर्माण जैसे कार्य उन्हीं को मिलते हैं, या तो जिनकी पहुंच ऊंची होती है या फिर यह लोग खुले हाथ से खर्च करने में माहिर होते हैं। जो भ्रष्ट करिंदों को कमीशन खिला रहे होते हैं उन्हें विभाग बचा लेता है और जिनकी पहुंच ऊंची है उन्हें ऊपर से कवर मिलता रहता है। नतीजा सबके सामने है, सड़कें टूट रही हैं, गड्ढे जानलेवा साबित हो रहे हैं, गिट्टी और रोड़ी वाहनों से पिसकर धूल बन रही है और हवा में उड़कर माहौल को प्रदूषित कर रही है। प्रदेश के दूरस्थ इलाकों की तो बात ही क्या करें। राजधानी में भी सड़कों की हालत अच्छी नहीं है। जिस भोपाल में पूरे मध्य प्रदेश के जनप्रतिनिधियों, और खास कर विधायकों, सांसदों, मंत्रियों का जमावड़ा हमेशा बना रहता है, वहां भी सड़कों की हालत बदतर है। पॉश कहे जाने वाले इलाकों में भी हालात अच्छे नहीं है। फल स्वरुप आम आदमी तो हलाकान है ही, इससे सरकार की छवि भी खराब हो रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि जनता के प्रति जवाब देह, सरकार में बैठे जन प्रतिनिधि और विभागीय मंत्री, भ्रष्ट करिंदों की शोकाज नोटिस तक सीमित कार्रवाई के जंजाल को समझें। जांच के माध्यम से इस पहलू की भी पड़ताल की जाए कि बीच-बीच में किन ठेकेदारों अथवा कंस्ट्रक्शन फर्म्स को ब्लैक लिस्ट किया गया और फिर किस रास्ते से उन्हें बहाल भी किया जाता रहता है। जनता के बीच यह खुलासा होना भी आवश्यक है कि जब कभी जन दबाब के चलते कार्रवाई होती भी है तो फिर भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा केवल छोटे कर्मचारियों की बलि देकर खुद को पाक साफ कैसे साबित कर लिया जाता है। दावे के साथ लिखा जा सकता है कि यदि जवाबदेह विभाग के मंत्री और खासकर मध्य प्रदेश शासन के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जिस दिन उपरोक्त सवालों के जवाब खोजने में कामयाब हो जाएंगे, उसके बाद सड़कों का टूटना, उनका क्षतिग्रस्त होना और पानी में बह जाना पूरी तरह से भले न थमे, लेकिन इस तरह की घटनाओं में कमी अवश्य आएगी।