बीती 14 अक्टूबर की बात है। राजधानी में मां दुर्गा की प्रतिमा का एक विसर्जन का जुलूस निकल रहा था। इसमें 13 वर्षीय समर बिल्लोरे भी शामिल था। अचानक यह बालक बेहोश हुआ तो इसे अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बाद में पता चला कि यह बालक जुलूस के दौरान डीजे के तेज साउंड से काफी विचलित हो रहा था और जब-जब तेज आवाज में बज रहे डीजे की धमक उसका बेस और कंपन महसूस होते थे, तब तब वह अपने कान बंद करता था और छाती पर हाथ मलने लगता था। यहां एक बात और भी है वो ये कि बालक की मौत हृदय गति रुकने से बताई जा रही है। दावा किया जा रहा है कि डीजे के तेज साउंड से इस बालक के हृदय पर घातक आघात हुआ और उसकी दर्दनाक मौत हो गई। अब पता चल रहा है कि पुलिस ने केवल राजधानी में ही लगभग एक सैकड़ा डीजे संचालकों के खिलाफ एक साथ एफआईआर दर्ज की है। यहां एक बात स्पष्ट कर दें कि तेज साउंड में डीजे का बजाय जाना युवाओं में काफी लोकप्रिय साबित हो रहा है। लेकिन यह भी महसूस किया जा रहा है कि बुजुर्ग लोग, गर्भवती महिलाएं और हृदय रोग से पीड़ित महिला पुरुष जब भी तेज साउंड के साथ बजने वाले डीजे के आसपास पड़ते हैं, तब इन्हें बेचैनी होने लगती है। यह लोग अपने कानों पर जोर से हाथ रख लेते हैं। प्रयास करते हैं कि आवाज का शोर यथा संभव कम हो जाए। लेकिन इसके साउंड से, भारी बेस के कारण जो धमक और वाइब्रेशन पैदा होते हैं वह हृदय की धड़कन को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। यहां तक कि कमजोर प्रतिरोधी क्षमता के शरीर वाले लोगों का अंग अंग इससे कांपने लगता है। डीजे की तेज आवाज से यह पहले मौत हुई है ऐसा भी नहीं है। इसके पहले भी लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जबकि इसकी तेज धमक और आवाज के चलते हृदय आघात के अनेक मामले अस्पतालों तक पहुंचाते रहे हैं। यह और बात है कि स्वस्थ होने पर लोग इन मामलों पर धूल डाल देते हैं। क्योंकि भारी भरकम डीजे साउंड का उपयोग खुशी के मौके पर होता है और इन्हें इस्तेमाल करने वाले पीड़ित लोगों के अपने ही स्वजन, प्रियजन अथवा परिवारजन होते हैं। फिर भी यदि जानकारों की मानें तो यह बात स्पष्ट है कि तेज साउंड वाले डीजे अंततः प्राण घातक ही हैं। इस बारे में डॉक्टर आई के चुघ का अभिमत ध्यान देने योग्य है। उनका कहना है कि डीजे की तेज धमक और कानफोडू आवाज से कार्डियो वैस्कुलर डिजीज और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। असल में बहुत अधिक शोर से ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर तेजी से घटता या बढ़ता है। अगर किसी को हार्ट संबंधी बीमारी है तो उसे डीजे व लाउड स्पीकर से बचकर रहना चाहिए। आशय स्पष्ट है, चिकित्सक भी आनंद के इस अतिरेक को प्राण घातक ही मानते हैं। घरों में रहने वाले बुजुर्गों के अनुभव पूछे जाएं तो यही तथ्य निकाल कर सामने आएगा और आ रहा है कि जब-जब डीजे की कानफोडू आवाज और उसकी तेज धमक से युक्त बारातें, जुलूस अथवा शोभा यात्राएं रिहायशी इलाकों या फिर बाजारों से निकलते हैं तो उन्हें बेचैनी होने लगती है। कान के पर्दे झनझनाते हैं और अधिकांश मामलों में उन्हें अपनी छाती पर हाथ मलते देखा जाता है। यानी वे असहज हो जाते हैं और कामना करते हैं कि यह जानलेवा आवाज जल्दी से जल्दी बंद हो जाए या फिर यह दूर कहीं चली जाए। ऐसा न होने पर अनेक लोगों को डीजे साउंड के कानफोडू शोर और उसकी जान लेवा धमक से बचने के लिए इनसे दूर भागते भी देखा जाता है। ऐसा नहीं है कि पुलिस और प्रशासन को इस बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन न जाने क्यों ना तो इन पर रोक लगाई जाती है और ना ही इनके संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। अब जब एक बालक की मौत डीजे के जानलेवा साउंड की वजह से हो गई है तो पुलिस ने लगभग एक सैकड़ा डीजे संचालकों के खिलाफ एफआइआर तो दर्ज कर ली है, अब देखना यह है कि उनके खिलाफ कोई निर्णायक कड़ी कार्रवाई हो पाती है अथवा नहीं। क्योंकि ऐसे अनेक मामलों में अपने जीवन यापन की दुहाई देकर डीजे संचालक बचते रहे हैं। मामला भले ही मध्य प्रदेश की राजधानी में सामने आया हो लेकिन यह मामला काफी गंभीर है और देश के अन्य राज्यों, यहां तक कि केंद्र की सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए तथा इस परंपरा पर निर्णायक आघात करना चाहिए। एक तरीका यह भी है कि डीजे के कानफोडू शोर और इसकी तेज धमक को कम किया जाना चाहिए। कम से कम यह काम तो तत्काल प्रभाव से किया ही जा सकता है। जानकारी के लिए बता दे की डीजे का साउंड अमूमन 110 से लेकर 120 डेसिबल तक का होता है। ऐसे में डीजे का तेज साउंड न सिर्फ आपके दिमाग और कान बल्कि आपके दिल के लिए भी खतरनाक हो सकता है। खास तौर पर हार्ट पेशेंट के लिए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। अगर व्यक्ति ज्यादा देर तक डीजे साउंड के संपर्क में रहे तो दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है। कान में पड़ने वाला ज्यादा शोर क्षमता को प्रभावित करता है। पुलिस प्रशासन और सरकार से निर्णायक कार्रवाई की अपेक्षा है।