नई दिल्ली। कमजोर घरेलू बाजारों और निरंतर विदेशी पूंजी निकासी के बीच भारतीय रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.11 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंचने का नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। सोमवार को रुपये की यह गिरावट 4 पैसे के साथ हुई, जो इसकी कुल कमजोरी को उजागर करती है। रुपये की गिरावट मुख्यतः दो कारकों पर निर्भर करती है: घरेलू शेयर बाजार का नकारात्मक रुख और विदेशी निवेशकों की बिक्री। भारतीय इक्विटी बाजार में निरंतर गिरावट के चलते, विदेशी निवेशकों ने 211.93 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जो कि निवेशकों की लगातार बिकवाली का संकेत है। इस स्थिति ने घरेलू इक्विटी में लगभग 1.18 प्रतिशत तक गिरावट का सामना किया है।
इसके अतिरिक्त, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि ने रुपये की स्थिति को और कमजोर किया है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, ब्रेंट क्रूड की कीमत 75.02 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई, जो कि 2.63 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। उच्च तेल की कीमतें आमतौर पर रुपये पर दबाव डालती हैं, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। इस संदर्भ में, रुपये की गिरावट से स्पष्ट होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी की निर्भरता और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
इस तरह की आर्थिक परिस्थितियां, जहाँ रुपये की स्थिति कमजोर हो रही है, निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। भारतीय रुपये के इस गिरते स्तर के पीछे घरेलू बाजारों का नकारात्मक प्रवृत्ति और विदेशी निवेशकों की निरंतर बिकवाली का स्पष्ट प्रभाव है। यह संकेत करता है कि आने वाले समय में आर्थिक स्थिरता और विदेशी पूंजी आकर्षित करने के लिए भारत को सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता होगी। इस तरह की अस्थिरता के बीच, भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए उपायों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, ताकि रुपये की गिरावट को रोकने और बाजार में विश्वास बहाल करने में मदद मिल सके।