हाथियों की मौत मनुष्यों के लिए चिंता का विषय, शासन की चिंता जायज

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बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 10 हाथियों की मौत हो जाने के बाद मध्य प्रदेश शासन पशोपेश में है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर इस बाबत कार्य योजना बनाने की मंशा जाहिर की है। उल्लेखनीय है कि हाथियों एवं विभिन्न जंगली जानवरों के मरने की घटनाएं आए दिन विभिन्न माध्यमों से समाचारों की सुर्खियां बनी रहती हैं। अफसोस की बात यह है कि बहुत बड़ी निर्णायक कार्रवाई के अभाव में कुछ मोटी चमड़ी वाले अधिकारी अपने व्यक्तिगत नुकसान से बचे रहते हैं। फल स्वरुप इस तरह की अवांछनीय घटनाएं सामने आती रहती हैं। लेकिन इस बार 10 हाथियों की मौत ने मामले को चिंता जनित बना दिया है। यही वजह है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इस बारे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से बात की है। दोनों सरकारों के मुखिया इस बात पर सहमत हैं कि जंगली जानवरों से मनुष्य और मनुष्यों से जंगली जानवर परेशान तो हो रहे हैं। इन समस्याओं का हल तुरंत ढूंढा जाना बेहद आवश्यक हो चला है। सरसरी तौर पर मानव समाज जंगली जानवरों को अपने लिए प्राण घातक मानता है। यह धारणा इसलिए भी मजबूत होती है कि जब कभी भी मनुष्य और जंगली जानवर आमने-सामने होते हैं, तब किसी एक का जीवन संकट में आ ही जाता है। यही वजह है कि मनुष्य जानवर को और जानवर मनुष्यों को मार कर अपनी जीवंतता को सुनिश्चित बनाए रखने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। लेकिन मनुष्यों को यह बात समझनी होगी कि हमारे जिंदा रहने के लिए जंगल बेहद आवश्यक हैं । गांव और शहरों में तो विकास के नाम पर आए दिन सैकड़ो और हजारों की संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं। फल स्वरुप जल और वायु दोनों ही तेजी से प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। जानलेवा बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं ।कारण सिर्फ इतना है कि पेड़ों के अभाव में हमें शुद्ध वायु प्राप्त नहीं हो रही। क्योंकि शहरों में पेड़ रहे ही नहीं। अब गांव विकासशील हैं तो वहां भी जंगलों का महाविनाश शुरू हो चुका है। बस जंगलों की जमीन ही हरियाली से अच्छादित बची है। वहां भी माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों का गठजोड़ अपने निजी फायदे के लिए इसे समेटने में जुटा हुआ है। यह बात और है कि इस बार हाथियों की मौत उनकी खाद्य समस्या को लेकर बताई जा रही है। लेकिन यहां जंगली जानवरों की मौत का मसला इसलिए महत्वपूर्ण हो चला है, क्योंकि जंगलों में जब इनकी मात्रा आधिसंख्य होती है तो प्रकृति का दुश्मन बना हुआ मनुष्य उक्त जंगलों में जाने से डरता रहता है। वहां पेड़ों की कटाई एवं अन्य प्राकृतिक विनाश नहीं हो पाते। नतीजतन जंगलों में आवोहवा शुद्ध बनी रहती है। पेड़ बचे रहते हैं, नदियों, तालाबों, झरनों और प्राकृतिक झीलों का पानी स्वच्छ बना रहता है। इसका फायदा केवल मनुष्यों को ही नहीं सभी जीवो को प्राप्त होता है। हम जिन्हे खूंखार जानवर समझते हैं इन्होंने ही जंगलों को बचाए रखा है। यदि ये साफ हो गए तो बन माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों का घठजोड़ जंगलों को वृक्ष विहीन बनाने में ज्यादा देर नहीं लगाएगा। यह बात मनुष्यों के सभ्य समाज को समझनी होगी। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम तेजी से वन्य क्षेत्र में प्रवेश करते जा रहे हैं‌। रिहायशी कॉलोनीयों के नाम पर वन माफिया और भू माफिया सस्ते भूखंडों का लालच देते हैं। संबंधित विभाग भी आंख बंद किए बैठे रहते हैं‌। फल स्वरुप आर्थिक रूप से कमजोर तबका इनकी मनभावन योजनाओं की चपेट में आता चला जाता है और वहां मनुष्यों के आवास खड़े होते जा रहे हैं, जहां कायदे से जंगली जानवरों का अधिकार है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी हालात ऐसे ही हैं । यहां अनेक इलाके इस बात के लिए प्रख्यात है कि वहां दिन में मनुष्य आवाजाही करता है तो रात में खूंखार जंगली जानवर बिचरते रहते हैं। इस अवस्था को मध्य प्रदेश शासन भले ही विलक्षण दृश्य के रूप में प्रचारित कर रहा हो, लेकिन सत्यता यही है कि मनुष्य तेजी से जंगली इलाके में अप्राकृतिक दखलअंदाजी कर रहा है‌। उसी का नतीजा है कि जंगली जानवर विचलित हो रहे हैं और कई बार यह सामूहिक रूप से मनुष्यों की बस्तियों में घुस आते हैं तथा भारी पैमाने पर विध्वंस मचाने के बाद जंगलों की ओर लौट जाते हैं। कई बार धन हानि के साथ-साथ भारी जनहानि भी होती है। तात्कालिक तौर पर चीख पुकार मचने के बाद फिर कुछ समय बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। बस यही चिंता का विषय है। जब अनहोनी निरंतरता बनाए हुए हैं तो फिर सब कुछ सामान्य नहीं होना चाहिए। हमें जानवरों का ध्यान रखना ही होगा। क्योंकि उनका अस्तित्व हमारे अस्तित्व के लिए बेहद आवश्यक है‌। यदि जानवरों को बचाया तो जंगल बचे रहेंगे और जंगल अस्तित्व में रहे तो हमें प्राण वायु प्राप्त होती रहेगी। अति आवश्यकता इस बात की है कि सरकार के साथ-साथ मानव समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा। हमें चिंतन करने की आवश्यकता है कि कहीं हम जाने अनजाने अपना आशियाना बनाने के फेर में जंगली जानवरों के रिहायशी इलाके में अतिक्रमण तो नहीं कर रहे। जो लोग लक्ष्मण रेखा लांघकर जंगली जमीनों पर स्थापित हो चुके हैं, उन्हें भी अपने कृत्यों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। वन विभाग को तो अपनी गलती मानते हुए युद्ध स्तर पर इस और निर्णय कार्रवाई करने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने हाथियों की मौत के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करके यह स्पष्ट कर दिया है कि मनुष्य हो या जानवर किसी की भी जान सस्ती नहीं है। यदि कोई इसे खेलने का प्रयास करेगा तो मध्य प्रदेश सरकार उसके साथ कड़ाई से पेश आने वाली है।

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