श्रमिकों और हुनरमंदों के प्रति संवेदनशील प्रदेश की मोहन यादव सरकार

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बहुत कम जन प्रतिनिधि ऐसे होते हैं जिन्हें चुनाव जीत जाने के बाद अपने मतदाताओं और खास कर पिछड़ों एवं अति पिछड़ों के हितों का ध्यान शेष रह जाता है। अभी तक के अनुभव कहते हैं कि नेताओं का एक ही लक्ष्य सर्वोपरि रहता है, वह यह कि किसी तरह चुनाव जीत जाओ और फिर जो कुछ इन्वेस्ट हुआ है उसे ब्याज समेत वसूलने के अभियान में जुट जाओ और ऐसा हो भी रहा है। यहां बात सत्ता पक्ष और विपक्ष की बिल्कुल नहीं है। बात राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों के आचरण, उनके व्यवहार और नीयत को लेकर हो रही है। यह सब कुछ आम जनता की समझ में भी आ चला है। यही कारण है कि लोग अब नेताओं पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करते। शायद यही वजह है कि जब नेता मतदाताओं के दर पर वोट मांगने जाते हैं तब मतदाता उनसे मोल भाव करने पर उतारू हो जाता है। इसी का परिणाम है मतदान के दौरान मीडिया में खबरें देखने सुनने को मिलती हैं कि अमुक स्थान पर अमुक प्रत्याशी द्वारा वोट प्राप्त करने के लिए मतदाताओं को धन बांटा जा रहा है। उन्हें तरह-तरह के उपहार दिए जा रहे हैं। लेकिन जब ले देखकर नेता जीत जाता है और जनप्रतिनिधि बन जाने के बाद जनता अपने काम के लिए उसे उम्मीद करने लगती है, तब उसका अप्रत्यक्ष उत्तर यही होता है कि अब कैसा काम और कौन सा काम ? जब मुझे तुमसे काम था तब तुमने मुझसे उसकी पूरी कीमत वसूली, अब जब तुम्हें मुझसे काम है तब यह उम्मीद कैसे कर सकते हो कि मैं वह सब फोकट में कर दूंगा! किंतु मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव का आचार व्यवहार इन सबसे अलग है। मूलतः मोहन यादव एक मध्यम वर्गीय परिवार से होने के नाते आम आदमी की भावनाओं और उसकी परेशानियों को भली भांति समझते हैं। यही कारण है कि जब कभी भी शासकीय अथवा राजनीतिक दौरे पर होते हैं तब उनका संपर्क पूर्व निर्धारित शेड्यूल से हटकर मार्ग में मिलने वाले आम आदमी से बना रहता है। वह उसके हाल-चाल पूछते हैं और परेशानियों के बारे में भी जानना चाहते हैं। मतदाता भी उनके इस सब व्यवहार के बारे में जान चुके हैं सो अब वह उनसे उम्मीदें करने लगे हैं। इन्हें भरोसा हो चला है कि यदि हमारी बात मुख्यमंत्री के कानों तक पहुंच जाए तो फिर समस्याओं के निराकरण की उम्मीद की जा सकती है। यही सब बीते रोज ग्वालियर में देखने को मिला। वहां मुख्यमंत्री जब जनसाधारण से मुलाकात कर रहे थे तब जेसी मिल के पूर्व कर्मचारियों ने उन्हें घेर लिया और आग्रह करने लगे कि दशकों से बंद पड़ी कपड़ा मिल पर बकाया उनका भुगतान दिलाया जाना चाहिए। डॉक्टर मोहन यादव ने उन्हे भरोसा दिलाया है कि इस लक्ष्य पर इस मांग के सामने आने से पहले ही एक टीम काम करना शुरू कर चुकी है। वह जल्दी ही आप सब की समस्याओं का निराकरण प्रस्तुत करेगी, जिस पर जल्दी से जल्दी अमल किया जाएगा। संभव है कुछ लोग इसे राजनीतिक जुमला भी बताएं। लेकिन अभी तक इस तरह के कम से कम दो मामले सामने हैं जिन्हें शासन की मध्यस्थता के चलते निराकृत किया जा चुका है। इंदौर की हुकुमचंद मिल और उज्जैन की विनोद विमल मिल के मजदूरों कर्मचारियों का मामला जिस समझदारी के साथ निपटाया गया, उसके बाद उम्मीद की जाने लगी है कि जब मध्य प्रदेश की सरकार देवास और इंदौर की मिलों के कर्मचारियों और श्रमिकों को उपकृत कर सकती है तो फिर संभव है ग्वालियर के जैसी मिल मामले का निराकरण भी हो ही जाएगा। उल्लेखनीय है कि ग्वालियर स्टेट के राजघराने सिंधिया राजवंश की व्यक्तिगत रुचि के चलते ग्वालियर में जयाजी राव कॉटन मिल की नींव रखी गई थी। ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। लेकिन तत्समय वामपंथी विचारधारा से ग्रसित कर्मचारी यूनियनों ने जेसी मिल में इतनी हड़तालें कराईं, इतने आंदोलन किये, इतनी बाधाएं पैदा कीं, कि जेसी मिल को आखिर बंद करना पड़ गया। तब से लेकर आज का दिन है सिंधिया राजवंश व्यक्तिगत तौर पर उद्योग स्थापित करने को लेकर उदासीन ही नजर आता है। इस राजधानी के बेहद व्यक्तिगत सूत्र बताते हैं कि जेसी मिल की स्थापना पैसे कमाने के लिए की ही नहीं गई थी। क्योंकि इस राजवंश के पास धन की कमी कभी रही ही नहीं। वो तो यह चाहते थे कि स्थानीय स्तर पर नए-नए उद्योग धंधे स्थापित करके नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाया जाए। लेकिन जब कर्मचारी और मजदूर यूनियनों के बे मौसम आंदोलन, हड़ताल तथा बेमतलब की राजनीतिक उठा पटकों से पाला पड़ा तो इस राजघराने को औद्योगिक क्षेत्र से हाथ वापस खींचने पड़ गए। यहां कर्मचारियों, श्रमिकों और कारीगरों के लिए भी सबक हासिल करने के लिए काफी संदेश हैं। उन्हें यह समझना होगा कि किसी भी संस्थान में अपने जायज हक हासिल करने के लिए सबसे अच्छा तरीका होता है व्यवस्था का सहयोग करते हुए उस संस्थान के विकास में सहयोगी बन जाना। कोई भी मिल हो अथवा अन्य व्यावसायिक संस्थान। वहां एक दूसरे के प्रति सद्भाव बना रहता है। जब संस्थान मुनाफे में आता है तब देर सवेर उसे अपने पर निर्भर लोगों की सुध अंततः आ ही जाती है वर्ना करिंदों द्वारा सही समय पर जायज मांग उठाए जाने पर तो लक्ष्य हासिल हो ही जाता है।

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