मध्य प्रदेश कई मायनो में अलग है और विलक्षण भी। इसे भारत का हृदय प्रदेश भी कहा जाता है। जाहिर है जब यहां कोई घटना घटित होती है या फिर किसी प्रकार का नवाचार उपयोग में लाया जाता है, तब इसका प्रभाव भी पूरे राष्ट्र पर परिलक्षित होना स्वाभाविक है। यही वजह है कि राजनीति और प्रशासनिक मामलों में भी पूरे देश के राजनेताओं एवं नौकरशाहों की नजर इस प्रांत पर लगी रहती है। इस बात की बेहद संतुष्टि है कि यहां के शासन प्रशासन और यहां तक की राजनैतिक दलों ने भी इस गरिमा को बनाए रखा है। यह गरिमामय वातावरण बुधनी और विजयपुर के उपचुनावों में भी स्पष्ट रूप से देखने को मिला। हालांकि इस बात पर खेद व्यक्त किया जा सकता है कि दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव के दौरान छुटपुट हिंसा के दृश्य देखने को मिले। लेकिन इसी के साथ अच्छी खबर यह मिली कि मतदाताओं ने दोनों ही क्षेत्रों में चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपना मत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के हवाले कर दिया। अब कौन हारेगा और कौन जीतेगा यह मत गणना के बाद ही उजागर हो पाएगा। लोकतंत्र की सुंदरता भारत को क्यों विशिष्ट बनाती है, इसका एक उदाहरण विजयपुर विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिला। यहां पारंपरिक रूप से भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी आमने-सामने रहे। मतदान के ठीक पहले थोड़ा तनाव भी देखने को मिला। लेकिन चुनाव आयोग ने बड़ी खूबसूरती के साथ न केवल उसे पर नियंत्रण स्थापित किया, बल्कि दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को नजर बंद कर दिया। यह इसलिए भी उचित प्रतीत होता है, क्योंकि दोनों ही दलों के नेता एक दूसरे पर मतदाताओं पर दबाव बनाने के आरोप चस्पा कर रहे थे। इससे भी बड़ी बात यह हुई कि जब मतदान के 48 घंटे पहले बाहरी लोगों को चुनाव प्रभावित क्षेत्रों से बाहर किया गया तो यह व्यवहार विजयपुर में भी देखने को मिला। चूंकि वहां कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए और अब उसी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे रामनिवास रावत पर उनकी पुरानी पार्टी के नेताओं की टेड़ी नजर है। अतः वहां कांग्रेस की ओर से तनाव कुछ ज्यादा देखने को मिला। कांग्रेसियों का आरोप था कि भाजपा सत्ता में होने का नाजायज फायदा उठाकर मतदाताओं को प्रभावित कर रही है। विपक्ष की ओर से यह आरोप भी लगाए गए थे कि सत्ता पक्ष चुनावी मशीनरी का दुरुपयोग कर रहा है तो वहीं चुनावी अमला भी सत्ता पक्ष के एजेंट के रूप में काम करता दिखाई दे रहा है। लेकिन चुनाव आयोग की निष्पक्षता उस वक्त एक नजीर साबित हुई जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी श्योपुर जिले में घुसने की कोशिश करने लगे तो उन्हें जिले की सीमा पर ही रोक दिया गया। इस पर विपक्ष ने एक बार फिर चुनाव आयोग की निष्पक्षता को कलंकित करने का प्रयास किया। आरोप लगाए कि चुनाव आयोग बीजेपी एजेंट के रूप में काम कर रहा है। लेकिन विरोधी दल के नेताओं की बोलती उस वक्त बंद हो गई जब चुनाव आयोग ने श्योपुर के बॉर्डर पर ही एक अन्य गांव बांसुरिया में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा एवं उनके काफिले को भी रोक दिया। उनका आरोप था कि कांग्रेस अपनी संभावित हार से बौखला गई है और चुनावी फिजा को बिगड़ने पर उतारू है। लेकिन जब उन्हें भीतर नहीं घुसने दिया गया तो भाजपा नेता अपने समर्थकों के साथ वहीं धरने पर बैठ गए और लोकतांत्रिक तरीके से नारेबाजी करते हुए चुनाव आयोग से निर्णायक कार्रवाई की मांग करते रहे। यही भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है। यहां यदि विपक्षी नेताओं और विरोधी राजनीतिक दलों को मनमानी करने से रोका जाता है तो सत्ता पक्ष में बैठे विशिष्ट जनों को भी कानून से नियंत्रित करने की हिम्मत दिखाई जाती है। इस बारे में सत्ता पर काबिज भाजपा और उसके प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की इसलिए तारीफ करनी पड़ेगी, क्योंकि उन्होंने सत्ता पक्ष की पार्टी के मुखिया होने के प्रभाव का किंचित मात्र भी प्रयोग नहीं किया तथा एक आम नागरिक की तरह अपनी मांग चुनाव आयोग और पुलिस प्रशासन के सामने रखने के लिए धरने पर बैठ गए। इससे यह साबित होता है कि जब देश और प्रदेश चुनावों से रूबरू हो तब वहां चुनाव आयोग ही नियंत्रण कर्ता होता है और उसकी नजरों में क्या पक्ष और क्या विपक्ष, सभी बराबर बने रहते हैं। राजनैतिक दलों को भी इस मामले में बेहतर परिणाम की अपेक्षा के चलते चुनाव आयोग का सहयोग करने हेतु सकारात्मक कदम आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इस बारे में भाजपा और उसके मुखिया विष्णु दत्त शर्मा से अनुशासन का पाठ सीख जा सकता है। क्योंकि अभी तक तो सत्ता पक्ष के लोगों को चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं के करिंदों पर आंखें तरेरते हुए ही देखा गया है। लेकिन ऐसे दृश्य बहुत कम देखने को मिलते हैं जब सत्ता पक्ष पर काबिज पार्टी के मुखिया को जब ऐसा लगा कि उन्हें अपनी बात को ठीक से रखने के लिए आंदोलन का सहारा लेना पड़ेगा, तो उन्होंने आक्रोषित ना होते हुए लोकतांत्रिक तरीके का सहारा लिया और अपनी बात रखने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से धरने पर बैठ गए। प्रबुद्ध वर्ग द्वारा भाजपा और उसके प्रांतीय प्रमुख की इस कार्य प्रणाली को मुक्त कंठ से सराहा जा रहा है। क्योंकि उनके व्यवहार ने और चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत एक लोक लोकतांत्रिक देश के रूप में वैश्विक स्तर पर आदर्श स्थापित कर चुका है। मध्य प्रदेश की चुनाव इकाई भी इस मामले में निष्पक्षता का परिचय देते हुए देश की गरिमामय छवि में चार चांद लगाने का काम कर रही है। इसके लिए चुनाव आयोग और सत्ता पक्ष की जितनी सराहना की जाए काम है। विपक्ष से भी यही अपेक्षा की जाती है कि उसे भी हताश न होते हुए देश और प्रदेश की सम्मानित अवस्था की खातिर सकारात्मक व्यवहार अपनाना चाहिए।