नई दिल्ली| भारतीय रिजर्व बैंक ने गुरुवार को लगातार तीसरी बार रेपो रेट में इजाफा कोई इजाफा नहीं किया है। ब्याज दर 6.50 फीसदी बनी रहेगी। इसका मतलब यह है कि आपके होम लेन की ईएमआई नहीं बढ़ेगी। वित्त वर्ष-2023-24 में महंगाई 5.1 फीसदी से बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत कर दिया है। वहीं, इस वित्त वर्ष में रियल जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.5 फीसदी पर बरकरार रखा है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में लिए फैसलों की जानकारी दी। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण जुलाई और अगस्त महीने में महंगाई बढ़ने की आशंका है।
उल्लेखनीय हो कि मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है, जिसमें देश की महंगाई और आर्थिक स्थितियों को देखते हुए आगे की रणनीति पर नीतिगत फैसले लिए जाते है। पिछले वित्त वर्ष-2022-23 की पहली मीटिंग अप्रैल-2022 में हुई थी। तब आरबीआई ने रेपो रेट को 4 प्रतिशत पर स्थिर रखा था। लेकिन आरबीआई ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40 फीसदी बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया था। मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक के बाद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इसमें लिए गए फैसलों के बारे में जानकारी दी है। हाल में देश में खानेपीने की चीजों के दामों में काफी तेजी आई है। माना जा रहा है था कि महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई लगातार तीसरी बार नीतिगत दरों को यथावत रख सकता है। आरबीआई का दावा है कि भारत दुनिया का ग्रोथ इंजन बनेगा।
आरबीआई के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को आरबीआई से मिलेने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है। इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।